SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाल-लक्षण उस शराबी ने कहा, उससे मैं इंकार नहीं करता कि आपने सुनी हैं। आपने जरूर सुनी होंगी, लेकिन मैंने नहीं दीं। मैं शराब पीए था। मैं होश में न था। अब बेहोशी के लिए मुझे तो कसूरवार न ठहराओगे! शराब से निकली होंगी, मुझसे नहीं निकलीं। जब से होश आया है, तब से पछता रहा हूं। तुमने जो कुछ किया है, बेहोशी में किया है। जब होश आएगा, पछताओगे। तुमने जो बसाया है, बेहोशी में बसाया है। जब होश आएगा तब तुम पाओगे, रेत पर बनाए महल। इंद्रधनुषों के साथ जीने की आशा रखी। कामनाओं के सेतु फैलाए, कि शायद उन से सत्य तक पहुंचने का कोई उपाय हो जाए। तुम्हारी तंद्रा में ही तुम्हारे सारे संसार का विस्तार है। बुद्ध का पहला सूत्र है: 'जागने वाले की रात लंबी होती है। थके हुए के लिए यात्रा लंबी होती है, योजन लंबा होता है, कोस लंबा होता है। वैसे ही सदधर्म को न जानने वाले मूढ़ों के लिए संसार बड़ा होता है।' .. अल्बर्ट आइंस्टीन ने इस सदी में विज्ञान को एक सिद्धांत दिया सापेक्षवाद का। बुद्ध पुरुषों ने उस सिद्धांत को अंतरात्मा के जगत में सदियों पहले दिया था। आइंस्टीन से कोई पूछता था कि तुम्हारा यह सापेक्षता का सिद्धांत आखिर है क्या? इतनी चर्चा है, नोबल पुरस्कार मिला है, जगह-जगह शब्द सुना जाता है, लेकिन इसका अर्थ क्या है? तो आइंस्टीन कहता था, मुश्किल है तुम्हें समझाना। कहते हैं कि मुश्किल से बारह लोग थे जमीन पर, जो उस सिद्धांत को ठीक से समझते थे। सिद्धांत थोड़ा जटिल है। और जटिल ही होता तो भी इतनी कठिनाई न थी, थोड़ा तर्कातीत है। थोड़ा बुद्धि की सीमाओं के उस पार चला जाता है, जहां पकड़ नहीं बैठती, जहां मुट्ठी नहीं बंधती, जहां धागे हाथ से छूट जाते हैं; जहां विचार छोटा पड़ जाता है। पर आइंस्टीन ने धीरे-धीरे एक उदाहरण खोज लिया था। साधारण आदमी को समझाने के लिए वह कहता था कि तुम्हारा दुश्मन तुम्हारे घर आकर बैठ जाए, घड़ीभर बैठे तो ऐसा लगता है कि वर्षों बीत गए। और तुम्हारी प्रेयसी घर आ जाए, तो घंटों बीत जाएं तो ऐसा लगता है पलभर भी नहीं बीता। समय का माप कहीं तुम्हारे मन में है। समय का माप सापेक्ष है, तुम्हारे मन पर निर्भर है। जब तुम खुश होते हो, समय जल्दी जाता है। जब तुम दुखी होते हो, समय धीरे-धीरे रेंगता है, सरकता है, लंगड़ाता है। समय तो वही है, घड़ी की चाल वैसी ही है, तुम्हारे सुख-दुख से नहीं बदलती, लेकिन तुम्हारा अंतर-भाव समय के प्रति रूपांतरित हो जाता है। जिंदगी खुशी की हो, जल्दी बीत जाती है। जिंदगी दुख की हो, बड़ी लंबी मालूम होती है, बीतती ही मालूम नहीं होती। घर में कोई प्रियजन मरने को पड़ा हो बिस्तर पर, रात तुम्हें जागना पड़े, तो ऐसा
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy