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________________ एस धम्मो सनंतनो सं सा र बड़ा है, विशाल है। लंबी है यात्रा उसकी। लेकिन संसार के कारण संसार बड़ा नहीं है; संसार बड़ा है, क्योंकि तुम्हें अपनी कोई खबर नहीं है। संसार बड़ा है, क्योंकि तुम बेहोश हो। तुम्हारी बेहोशी में ही संसार का विस्तार है। तुम्हारी बेखुदी में ही संसार की विराटता है। जैसे ही तुम जागे, वैसे ही संसार छोटा हुआ। इधर तुम जागे, उधर संसार खोना शुरू हुआ। जिस दिन परिपूर्ण रूप से कोई जागता है, संसार शून्य हो जाता है। इसलिए ज्ञानियों ने संसार को माया कहा। माया अर्थात लगता है कि है, और फिर भी नहीं है। तुम्हारे सोने में ही जिसका होना है। माया अर्थात तुम्हारे सोने में ही जिसका होना है, तुम्हारे जागने में जिसकी मृत्य है। माया अर्थात स्वप्न। रात सोए तो स्वप्न का विस्तार है। रात सोए तो स्वप्न में सचाई है। रात सोए तो स्वप्न में यथार्थ है। आंख खुली, सब सचाई गई, सब यथार्थ मिटा। स्वप्न की राख भी नहीं बचती सुबह। भोर जब आंख खुलती है तो स्वप्नों का सारा लोक शून्य हो जाता है। . ऐसा ही संसार है। जब तक तुम सोए हो, अंतर की ज्योति नहीं जगी, तभी तक है; तुम्हारे न होने में है। तुम हुए कि मिटा। ___तो संसार को गालियां मत देना। संसार की निंदा भी मत करना। उससे कुछ भी न होगा। संसार को छोड़कर भी मत भाग जाना; उससे भी कुछ न होगा। कुछ करना हो तो जागना। कुछ वस्तुतः ही करना चाहते हो तो होश को लाना, बेहोशी तोड़ना। इधर होश आया, उधर संसार गया। छोड़ना भी नहीं पड़ता, छूट जाता है। छूट जाता है, कहना भी शायद ठीक नहीं, पाया ही नहीं जाता। जागकर जो नहीं पाया जाता, वही संसार है। और जागकर जो पाया जाता है, वही सत्य है। ___शराब पी ली तुमने-पैर डगमगाने लगे, लेकिन लगता ऐसा है, जैसे सारा संसार डगमगा रहा है। शराब पी ली तुमने-जो नहीं है, दिखाई पड़ने लगता है। जो है, अदृश्य हो जाता है। शराब पी ली तुमने-एक पर्दा आंख पर पड़ गया। एक तंद्रा छा गई भीतर के आकाश पर। बदलियां घिर गयीं बेहोशी की। छिप गया सूरज होश का। भीतर अंधकार हुआ, बाहर सब रूपांतरित हो जाता है। अकबर एक राह से गुजरता था। एक शराबी ने बड़ी गालियां दी मकान पर चढ़कर। नाराज हुआ अकबर। पकड़वा बुलाया शराबी को। रातभर कैद में रखा। सुबह दरबार में बुलाया। वह शराबी झुक-झुककर चरण छूने लगा। उसने कहा, क्षमा करें। वे गालियां मैंने न दी थीं। अकबर ने कहा, मैं खुद मौजूद था। मैं खुद राह से गुजरता था। गालियां मैंने खुद सुनी हैं। किसी और गवाह की जरूरत नहीं।
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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