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एस धम्मो सनंतनो
तब तक कौन प्रार्थना करने को राजी होता है? ___ मैंने सुना है, इंग्लैंड की महारानी एक चर्च में आने को थी। एक धनपति ने चर्च के पादरी को फोन किया कि मैंने सुना है कि आने वाले रविवार को महारानी स्वयं चर्च में आने वाली हैं। क्या यह सच है? अगर यह सच हो तो मेरे लिए भी प्रथम पंक्ति में स्थान बनाकर रखा जाए। चर्च के पादरी ने कहा, राजा-रानियों का क्या भरोसा? एक बात पक्की है कि परमात्मा आएगा। रानी-राजा का क्या भरोसा? आएं, न आएं; एक बात पक्की है कि परमात्मा आएगा। पहले भी आता रहा है, अब भी आता रहेगा। अगर तुम्हारी उत्सुकता परमात्मा में हो तो पहली पंक्ति में स्थान बनाकर रखेंगे। उस आदमी ने कहा कि ठीक है, फिर कोई बात नहीं। परमात्मा में किसकी उत्सुकता है? लेकिन रानी देख ले कि प्रथम पंक्ति में बैठे हैं चर्च में।
वैसी एक कहानी मैंने और सुनी है कि स्वीडन का सम्राट एक बार एक चर्च में गया। तो वहां बड़ी भीड़ थी प्रार्थना करने वालों की। खचाखच भरा था चर्च। इंचभर जगह न थी। वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने पुरोहित को कहा कि मैं खुश हूं कि लोग इतने धार्मिक हैं। उसने कहा, महानुभाव, भूल में पड़ते हैं। यह चर्च सदा खाली रहता है। ये आज क्यों यहां आए हैं, मुझे पता नहीं। आपकी वजह से आए होंगे, परमात्मा के कारण नहीं आए। और ये इतने जोर-जोर से जो प्रार्थनाएं चल रही हैं, ये आपको सुनाने को चल रही होंगी। इन प्रार्थनाओं के पीछे राजनीति होगी, धर्म नहीं है। __ मढ़ अगर संन्यस्त भी हो जाए, तो गलत ही कारणों से होता है। मूढ़ अगर व्रत भी ले तो गलत कारणों से ही लेता है। और मूढ़ों को समझाने वाले जो लोग हैं, वे भी इस राज को समझते हैं। वे उनकी मूढ़ता को ही प्रोत्साहन देते हैं।
अणुव्रत ले लो तो बड़ा आदर-सत्कार होता है। ब्रह्मचर्य का व्रत ले लो तो तालियां पिट जाती हैं। वे तालियां पीटने वाले भी जानते हैं कि तालियां पीटना तुम्हारे लिए ज्यादा मूल्यवान है ब्रह्मचर्य से। ये तालियां याद रहेंगी। फिर तुम डरोगे कि समाज ने इतना सम्मान दिया, अब अगर व्रत तोड़ें तो सम्मान छिन न जाए। इसलिए तुम्हारा समाज साधु-संन्यासियों को इतना सम्मान देता है। सम्मान का कारण यह है कि वे सम्मान के कारण ही साधु-संन्यासी हैं। अगर सम्मान गया, साधु-संन्यास भी गया।
तुम उनके अहंकार की पूजा कर रहे हो, ताकि अब वे संन्यासी हो गए हैं तो बने रहें। वे हुए भी इसीलिए हैं; वे बने भी इसीलिए हैं। थोड़ा सोचो, भारत में कोई एक करोड़ साधु-संन्यासी हैं, एक करोड़ साधु-संन्यासी अगर सच में हों तो इस मुल्क के भाग्य में और क्या कमी रह जाए? लेकिन उनके होने से कुछ होता नहीं है, सिर्फ थोड़ा उपद्रव होता है।
रहिए अब ऐसी जगह चलकर जहां कोई न हो
हमसुखन कोई न हो और हमजबां कोई न हो ऐसी जगह तो खोजनी मुश्किल है। जहां भी जाओगे, जहां तुम जा सकते हो,
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