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________________ एस धम्मो सनंतनो यह माने तो कोई ध्यान के जगत में प्रवेश कर नहीं सकता। ____'मूढ़ का जितना भी ज्ञान है वह उसके ही अनर्थ के लिए हो जाता है। वह मूढ़ के मस्तिष्क को नीचे कर उसके शुक्लांश को नाश कर देता है।' ___ जैसे रात है और दिन है, ऐसे ही तुम्हारे भीतर भी दो पहलू हैं, एक शुभ का है, एक अशुभ का है। वह जो अशुभ का पहलू है, वह उधार से जीता है। उसकी अपनी कोई संपदा नहीं है। शैतान उधार से जीता है। इसको समझ लेना; इसका अर्थ यह होता है कि शैतान तुम्हें यह धोखा देकर जीता है कि वह भगवान है। झूठ तुम अगर किसी से बोलो तो तुम तभी बोल सकते हो, जब तुम यह उसे आश्वासन दो कि यह सच है; जब तुम कसम खाओ कि यह सच है। झूठ सच का धोखा देकर ही चल सकता है, और कोई उपाय नहीं है। और उतना ही चल सकता है, जितनी देर तक दूसरे को उसके सच होने का भ्रम बना रहे। जैसे ही पता चला कि झूठ है, वहीं गिर जाता है। फिर वहां से एक इंच आगे नहीं जा सकता। अगर दुनिया में सभी लोग झूठ बोलने वाले हों और यह स्वीकृत सत्य हो जाए कि बस झूठ ही जीवन का व्यवहार है, तो झूठ मर जाएगा। झूठ चल ही न सकेगा। कोई मानेगा ही नहीं। झूठ चल सकता है, सत्य का आभास दे तो। ध्यान रखना, वह तुम्हारे भीतर जो अंधेरा कोना है, वह तुम्हें प्रकाश का आभास दे तो ही बचा रह सकता है; अन्यथा मिट जाएगा। तुम उसे कभी का उठाकर फेंक दोगे। गले में चट्टान लटकाकर तुम तभी तक चल सकते हो, जब तक तुम्हें खयाल हो कि यह चट्टान नहीं, कोहिनूर है। जंजीरें तुम तभी तक पहने रह सकते हो, जब तक तुम्हें खयाल हो, ये जंजीरें नहीं, आभूषण हैं। कारागृह में तुम तभी तक रह सकते हो, जब तक तुम्हें पता हो कि यह घर है, अपना घर है। संसार तभी तक तुम्हें पकड़े रख सकता है, जब तक तुम्हें खयाल है कि संसार सत्य है, संसार परमात्मा है। मुझे मालूम है अंजाम रूदादे-मुहब्बत का मगर कुछ और थोड़ी देर सई-ए-रायगां कर लूं मालूम है, जिसे तुम प्रेम कहते हो, उसका अंत। मालूम है उस प्रेम-कथा का अंत। सिवाय नर्कों के और कहीं ले नहीं गई। फिर भी तुम्हारा अंधेरा कोना कहे जाता है मगर कुछ और थोड़ी देर सई-ए-रायगां कर लूं यह व्यर्थ कोशिश थोड़ी देर और कर लूं। . अब यह जरा सोचने की बात है। जब तुम्हें पता चल गया कि यह व्यर्थ कोशिश है, तो तुम थोड़ी देर और करोगे? नहीं, तुम्हें पता ही न चला होगा। यह उधार है खयाल कि यह कोशिश व्यर्थ है। तुम्हें तो यही खयाल है कि इस कोशिश में सार्थकता है। अभी भी सफलता मिल सकती है। अभी भी आशा की किरण शेष है। 162
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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