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एस धम्मो सनंतनो
तुम्हें चारों तरफ से घेर लेता है। ____ डरो उन शास्त्रों से, जिनके शब्दों के पीछे, हसीन अंधेरों के पीछे-बड़े सुंदर हैं वे शब्द-मूढ़ता शरण पा लेती है।
उपनिषद में कथा है : उद्दालक का बेटा श्वेतकेतु ज्ञान लेकर घर लौटा; विश्वविद्यालय से घर आया। बाप ने देखा, दूर गांव के पगडंडी से आता। सुबह सूरज उगा है। लेकिन बाप बड़ा दुखी हुआ। क्योंकि बाप ने सोचा था, विनम्र होकर लौटेगा: वह बड़ा अकड़ा हआ आ रहा है। अकड़ तो हजारों कोस दूर तक खबर भेज देती है। अकड़ तो अपने चारों तरफ तरंगें उठा देती है। वह ऐसा नहीं आ रहा है कि जानकर आ रहा हो। ऐसा आ रहा है कि मूढ़ता तो भीतर है, ऊपर-ऊपर ज्ञान को संग्रहीत कर लाया है। पंडित होकर आ रहा है, ज्ञानी होकर नहीं आ रहा। विद्वान होकर आ रहा है, प्रज्ञावान होकर नहीं आ रहा है। कोई समझ की ज्योति नहीं जली है, अंधेरे शास्त्रों का बोझ लेकर आ रहा है। बाप दुखी हो गया।
बेटा आया। उद्दालक ने पूछा कि क्या-क्या तू सीखकर आया?
उसने कहा, सब सीखकर आया हूं। कुछ छोड़ा नहीं। यही तो मूढ़ता का वक्तव्य है। उसने गिनती करा दी, कितने शास्त्र सीखकर आया है। सब वेद कंठस्थ कर लिए हैं। सब उपनिषद जान लिए हैं। इतिहास, भूगोल, पुराण, काव्य, तर्क, दर्शन, धर्म, सब जानकर आया हूं। कुछ छोड़ा नहीं। सब परीक्षाएं पूरी करके आया हूं। स्वर्ण पदक लेकर आया हूं। ___बाप ने कहा, लेकिन तूने वह एक जाना, जिसे जानने से सब जान लिया जाता है? उसने कहा, कैसा एक? किसकी बात कर रहे हैं? बाप ने कहा, तूने स्वयं को जाना, जिसे जानने से सब जान लिया जाता है? श्वेतकेतु उदास हो गया। उसने कहा, उस एक की तो कोई चर्चा वहां न हुई।
तो बाप ने कहा, तुझे फिर जाना पड़ेगा। क्योंकि हमारे कुल में हम सिर्फ जन्म से ही ब्राह्मण नहीं होते रहे हैं, हम जानकर ब्राह्मण होते रहे। यह हमारी कुल की परंपरा है। मेरे बाप ने भी मुझे ऐसे ही वापस लौटा दिया था। एक दिन ऐसे ही अकड़कर मैं भी घर आया था; सोचकर कि सब जानकर आ रहा हूं। झुका था बाप के चरणों में, लेकिन झुका नहीं था। भीतर तो यही खयाल था कि बाप से भी ज्यादा जानता हूं। लेकिन मेरे पिता उदास हो गए थे और उन्होंने कहा था, वापस जा। उस एक को जाना, जिसे जानने से सब जान लिया जाता है? उन्होंने मुझसे कहा था, हमारे कुल में हम जन्म से ही ब्राह्मण नहीं होते रहे हैं, ब्रह्म को जानकर ब्राह्मण होते रहे हैं। तुझे वापस जाना होगा श्वेतकेतु। __श्वेतकेतु को वापस जाना पड़ा। तभी लौट सका घर, जब उस एक को जानकर आया। लेकिन तब और ही ढंग से आया। तब बात ही बदल गई। तब ऐसे आया, जैसे शून्य आता है। तब ऐसे आया, कि पैरों की पदचाप भी न हो। तब ऐसे आया,
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