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________________ लाभ-पथ नहीं, निर्वाण-पथ ताजा दूध शीघ्र ही नहीं जम जाता, थोड़ा समय लेता है। वैसे ही पाप-कर्म शीघ्र ही अपना फल नहीं लाता, थोड़ा समय लेता है; पकता है। तो जब तुम करते हो, तुम किसी और आशा से करते हो। आशा में ही सारा भ्रम-जाल है। तुम जब बीज बोते हो, तुम सोचते हो, आम के बो रहे हो; और जब फल आते हैं तब कडुवे सिद्ध होते हैं। और मूढ़ता यही है कि तुम फलों और बीजों को जोड़ नहीं पाते। तुम यह देख ही नहीं पाते कि दोनों में कोई संबंध है। __अफ्रीका में आदिम जातियां हैं। इस सदी के पहले तक उनको यह पता ही नहीं था कि बच्चे संभोग से पैदा होते हैं। यह पता नहीं था, क्योंकि बच्चे के पैदा होने में नौ महीने लगते हैं। फिर हर बार संभोग करने से बच्चे पैदा भी नहीं होते। पता भी कैसे चले ? फासला काफी बड़ा है। तो वे उनको खयाल ही नहीं था यह कि संभोग से बच्चे पैदा होते हैं। उनको खयाल था कि बच्चे तो भगवान की कृपा से पैदा होते हैं। देवी-देवताओं का हाथ है इसमें। हजारों साल तक बच्चे पैदा होते रहे और उन्हें यह पता भी न चला कि इसका कोई संबंध संभोग से है। बीज बोने में और फल के आने में नौ महीने का फासला है। इससे भी बड़े फासले हैं जिंदगी में। आज तुम कुछ करते हो, कभी-कभी वर्षों लग जाते हैं। काम तो शुरू हो जाता है, सिलसिला तो आज ही शुरू हो जाता है, लेकिन गर्भ पकता है, बड़ा होता है, जन्म लेते-लेते कई महीने लग जाते हैं। 'जैसे ताजा दूध शीघ्र ही नहीं जम जाता, वैसे ही पाप-कर्म शीघ्र ही अपना फल नहीं लाता। राख से ढंकी आग के समान जलाता हुआ वह मूढ़ का पीछा करता है।' राख समझकर अंगारों को तुमने ढोया है। भीतर अंगारे हैं। राख भी बुझा हुआ अंगारा है। जहां-जहां राख हो, थोड़ा सम्हलना। तुम्हारे जीवन का सारा दुख, तुम्हारा ही बोया हुआ है। आज तुम काट रहे हो। दूसरों को तुम दोष देते हो। ___ समझो; कोई गाली देता है, तुम अपमानित होते हो, लेकिन गाली किसी को अपमानित नहीं कर सकती। गाली में वह ताकत नहीं है। अपमानित तो तुम होते हो क्योंकि तुमने अहंकार के बीज बोए। तुमने अपने को कुछ समझा। तुम अकड़कर रहे। फिर किसी ने गाली दी, गाली तुम्हारे अहंकार के बीज को फोड़ देती है। जैसे बीज पड़ा हो भूमि में, वर्षा आ जाए और चटक जाए, अंकुरित हो जाए। खाली भूमि में तो वर्षा बीज को नहीं तोड़ सकती। बीज चाहिए। जहां नहीं होगा बीज, वर्षा हो जाएगी, बह जाएगी। भूमि वैसी की वैसी रह जाएगी। __ तुम अहंकार को पाले हो-हम रोज पाल रहे हैं। उसको हम बड़ा सजा-संवार कर रखते हैं। जितना तुमने सजा-संवारकर अपने अहंकार को रखा है, उतनी ही गाली तुम्हें चोट दे जाएगी। तुम्हारी सजावट पर निर्भर है कि गाली कितनी चोट देगी! तुम गाली देने वाले को दोषी मत मानना। खोज करना अपने भीतर, गाली छू गई क्यों? गाली आर-पार भी जा सकती थी तुम्हें बिना छुए। अगर तुम्हारे भीतर कोई 157
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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