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________________ एस धम्मो सनंतनो आश्वस्त मत हो जा। थोड़ा विचार कर, थोड़ा होशपूर्वक देख। शायद कि यह भी हो कोई सूरत मलाल की शायद यह भी दुख को छिपाने का कोई ढंग हो। शायद यहां भी कोई दुख छिपा हो। जल्दी से धोखे में मत आ जा। फूल देखकर जल्दी मत करना, शायद कोई कांटा छिपा हो। हर फूल में कांटे छिपे हैं; और हर खुशी में आंसुओं का वास है; और हर दिन के पीछे रात दबी है; और जहां-जहां तुमने सुख जाने हैं, वहां-वहां हमेशा दुख पाए हैं। जहां सुख खयाल में आया, जान ही लेना शायद कि यह भी हो कोई सूरत मलाल की गुलशन बहार पर है हंसो ऐ गुलो हंसो जब तक खबर न हो तुम्हें अपने मलाल की हंस लो। वसं आया है, फूल खिले हैं। फूलो! हंस लो; जब तक तुम्हें पता न हो, कि जल्दी ही पतझड़ आता है; जल्दी ही सूख जाओगे। खयाल रखना, अगर दुख दुख जैसे ही आते, तो कौन इतना मूढ़ होता जो दुखी होता? अगर कांटे कांटे की तरह ही सीधे आ जाते और फूलों की ओट में न आते, तो कौन इतना पागल होता जो कांटों से चुभता? अगर अंधेरे सीधे-सीधे आते, रोशनियों में पीछे छिपे न आते, तो कौन पागल होता जो अंधेरे को अपने भीतर वास देता, जगह देता, स्थान देता? नहीं, नर्क के दरवाजों पर स्वर्ग का नामपट लगा है। लोग तो स्वर्ग में ही जाते हैं, पहुंच जाते हैं नर्क में यह बात और! नामपटों से धोखे में मत आ जाना। जिनको तुमने ईश्वर के मंदिर समझा है, बहुत संभावना है शैतान की दुकानें हों। और जिनको तुमने रंगरेलियां समझा है, उत्सव समझा है, हो सकता है, सिर्फ अपने को भुलाने के इंतजाम हों। विस्मरण करने की चेष्टाएं हों। __यह दुखी आदमी हजार उपाय करता है कि दुख की याद न आए। और जिसे दुख की याद न आई, वह कभी सत्य की खोज पर निकला है? वह निकलेगा ही क्यों? बुद्ध सत्य की खोज पर निकले, क्योंकि दिखाई पड़ा, जीवन दुख है; क्योंकि दिखाई पड़ा, जीवन के पीछे मौत चली आती है। जीवन धोखा न दे पाया। जीवन के आवरण में मौत को पहचान लिया। ___ जरा गौर से अपने चारों तरफ देखना; जिनको तुम जिंदा कहते हो, उन सबके भीतर मौत के अस्थिपंजर दबे हैं। हर जगह से मौत ने झांका है, लेकिन उसने बड़े रंगीन चेहरे बनाए हैं। कांटे गुलाबों में ढंके हैं। यही तो अड़चन है। अन्यथा कोई भी क्यों इतनी देर तक अंधेरे में रुकता? कोई भी क्यों इतने दिन तक अज्ञान में भटकता? 'जैसे ताजा दूध शीघ्र ही नहीं जम जाता है—कहा है बुद्ध ने-वैसे ही पाप-कर्म शीघ्र ही अपना फल नहीं लाता। राख से ढंकी आग के समान जलाता हुआ वह मूढ़ का पीछा करता है।' 156
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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