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________________ एस धम्मो सनंतनो मूढ़ता को बचाने का। नास्तिक ही मूढ़ होते तो कोई बड़ा खतरा न था, नास्तिक बहुत थोड़े हैं। आस्तिक उतने ही मूढ़ हैं। तो तुमने कैसे मूढ़ता को बचाया है, इसे समझना। इतना ही कहो कि मुझे पता नहीं है, है ईश्वर या नहीं, कौन जाने? वेद के ऋषियों ने कहा है, हमें पता नहीं, किसने जगत बनाया! जिसने बनाया होगा, उसे ही पता हो। और कौन जाने, उसे भी पता है या नहीं! बड़े अनूठे लोग रहे होंगे। हमें पता नहीं है कि कैसे यह जगत बना; कैसे यह आविर्भाव हुआ; कैसे शून्य आकाश से इतने रंग-बिरंगे रूप निकले, कैसे यह अभिव्यक्ति का फैलाव हुआ! हमें पता नहीं है। जिसने बनाया होगा उसे ही पता होगा। और कौन जाने, उसे भी पता न हो! इतनी हिम्मत की बात वेद के अतिरिक्त किसी शास्त्र में नहीं है-कौन जाने उसे भी पता न हो! क्योंकि यह कहना-थोड़ा समझना, बारीक है-यह कहना कि उसे पता है, परोक्ष में यह कहना है कि हमें पता है। कौन कह रहा है, उसे पता है ? वह स्वयं तो नहीं कह रहा है। मैं कहता हूं कि ईश्वर ने दुनिया को बनाया। और उसको पता है कि दुनिया के बनाने का कारण क्या है, क्यों बनाया। लेकिन यह कह तो मैं ही रहा हूं। यह वक्तव्य तो मेरा ही है। यह ईश्वर भी मेरा; यह ईश्वर की स्रष्टा की तरह की धारणा भी मेरी; और इस ईश्वर को पता है, यह भी मेरा ही ज्ञान हुआ। उपनिषद, वेद के ऋषि ने अदभुत बात कही, कौन जाने, उसे भी पता है या नहीं! अहंकार को खड़े होने की जगह न छोड़ी। न ईश्वर को इंकार करके बचा पाओगे-क्योंकि वेद का ऋषि यह नहीं कहता कि ईश्वर नहीं है, इतना ही कहता है, मुझे पता नहीं है। वेद का ऋषि यह भी नहीं कहता कि ईश्वर को पता नहीं है; इतना ही कहता है, कौन जाने, उसे पता हो न हो, वही जाने। न तो ईश्वर के इंकार में अहंकार को बचाया और न ईश्वर के स्वीकार में अहंकार को बचाया। __ जरा सोचो, जरा ध्यान करो; तब तुम पाओगे कि ऐसी घड़ी में तुम मिटने लगे; धुएं की तरह बिखरने लगे। जब कुछ भी पता न हो तो तुम बचोगे कैसे? तुम्हारा होना ज्ञान की आड़ में बचता है। मैं जानता हूं, यही मैं के बचने की राह है। तो कोई मानकर बचता है, कोई आस्तिक होकर बचता है, कोई नास्तिक होकर बच जाता है। लेकिन तुम जब तक हो, तब तक चट्टान पड़ी है। फिर तुम कितनी सुरक्षा करते हो! अगर तुम आस्तिक हो और कोई कहे ईश्वर नहीं है, तो मरने-मारने को उतारू हो जाते हो। तुम सोचते हो, ईश्वर को बचा रहे हो! ईश्वर को तुम्हारे बचाव की जरूरत है? तुम अपनी मूढ़ता को बचा रहे हो। मरने-मारने को तैयार हो। तुम अपनी मूढ़ता को बचा रहे हो। अगर कोई कहेगा, ईश्वर नहीं है; तो तुम कहोगे, कौन जाने! शायद ऐसा ही हो। मुझे पता नहीं है। मैं कैसे खंडन करूं? मैं कैसे मंडन करूं? मैं हूं कौन? मेरी सामर्थ्य क्या है? अपनी वास्तविक स्थिति को इस भांति देख लेना कि उसमें कोई 154
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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