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एस धम्मो सनंतनो
अलग है। कभी लोहे की जंजीरें पहनते तुम, कभी सोने की-तुम दोनों जंजीरों से अलग हो। कभी फूलों से खेलते, कभी कांटों से-तुम दोनों से अलग हो। रात आती, सुबह आती-तुम दोनों से अलग हो। __ यह तुम्हारा जो पार होना है! प्रत्येक अनुभव से तुम अलग होओगे ही, क्योंकि अनुभव के भी तुम द्रष्टा हो। जब तुम कहते हो, बड़ा आनंद, तब गौर से देखो : तुम अलग खड़े देख रहो कि आनंद है। आनंद से तुम अलग हो।
पर पहले बाहर से तो भीतर आओ, फिर भीतर से भी छुड़ा लेंगे। आखिर में जब कुछ न बचे, आखिर में जब बस तुम ही बचो, तुम्हारा शुद्ध होना बचे-तो बुद्धत्व।
धर्म कोई अनुभव नहीं, धर्म अनुभव-अतीत है।
आज इतना ही।
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