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________________ मौन में खिले मुखरता होगी दही के खयाल से जाकर अंदर। बिल्ली का जूठा दही तूने खाया होगा। अब कुछ बहू को फिर बिल्ली का जूठा दही खिलाने के जरूरत नहीं है। वह भूल थी। लेकिन पत्नी न मानी। उसने कहा, भूल और सुधार, इन बातों में मैं नहीं पड़ती। कोई अपशगुन हो जाए! अपना बिगड़ता क्या है? लकीरें बनी रह जाती हैं। ऐसा हुआ था, ऐसा किया गया था, ऐसा कहा था। फिर हमारे अर्थ, फिर हमारा अंधापन उनमें जुड़ता है। और धर्म अंधविश्वास हो जाता है, और सत्य अपने शिखर खो देता है और घाटियों का झूठ हो जाता है। फिर उसी झूठ के आसपास भीड़ें बढ़ती चली जाती हैं। बुद्ध के पास जो लोग पहली दफे पहुंचे थे, अपने बोध से पहुंचे थे। फिर उनके बच्चे पैदा होते हैं; इन बच्चों को न बुद्ध से कुछ लेना है, न कुछ देना है। धर्म इनके लिए केवल एक रीति-रिवाज होता है। चूंकि बौद्धों के घर में पैदा हो गए हैं, इसलिए बौद्ध; हिंदू घर में पैदा होते, हिंदू; मुसलमान घर में पैदा होते, मुसलमान। यह संयोग की बात है। यह हिंदू के घर में पैदा होना उतनी ही संयोग की बात है, जितनी दही की मटकी के पास सफेद बिल्ली का होना। यह मुसलमान होना, यह तुम्हारा कोई चुनाव नहीं है। धर्म चुना जाता है। इसे मुझे फिर दोहराने दें। धर्म तभी सत्य होता है जब तुम उसे सजगता से, अपनी परिपूर्ण चेतना से चुनते हो। कोई व्यक्ति जन्म के साथ धर्म का मालिक नहीं हो सकता। और जब तक पृथ्वी पर जन्म के आधार पर धर्म रहेगा, तब तक अधर्म रहेगा। __मगर मुश्किल है। मेरे पास ही लोग आते हैं। पति-पत्नी संन्यास ले लेते हैं, अपने छोटे बच्चे को ले आते हैं, कहते हैं, इसे भी संन्यास दे दें। यह तो छोड़ें, स्त्रियां मुझसे संन्यास लेती हैं, वे कहती हैं, उनको गर्भ है, बच्चा गर्भ में है, उसको संन्यास दे दें। मैं कहता हूं, कम से कम उसे पैदा हो जाने दें। इतनी जल्दी क्या है? उसे भी तुम मौका दो, उससे भी तो पूछो; उसे चुनने दो, थोपो मत। ' तो जिसको तुम संप्रदाय की तरह जानते हो, वह थोपा हुआ धर्म है, वह तुमने चुना नहीं। चुनना तो केवल हिम्मतवरों का काम है। चुनने का अर्थ है दांव लगाना। तुम अगर मेरे पास आए हो तो यह चुनाव है। जब मैं जा चुका होऊंगा, तुम जा चुके होओगे, तुम्हारे बच्चे मुझे याद करेंगे-वह चुनाव नहीं होगा। ___ तुमने अगर मेरी तस्वीर अपने घर में टांग ली है, वह तुम्हारा प्रेम है। तुम्हारे बच्चे उसे बरदाश्त करेंगे; वह उनका प्रेम नहीं होगा। धीरे-धीरे वह तस्वीर सरकती जाएगी, बैठकखाने से पीछे के कमरों में पहुंच जाएगी। क्योंकि उनका भी प्रेम होगा किसी से-और यह उचित है ऐसा ही हो। ___ आखिर तुमने जब मेरी तस्वीर अपने घर में टांगी है तो कोई तस्वीर हटा दी होगी। और जब तुमने मुझे चाहा है तो कोई और चाह से संबंध तोड़ लिया होगा। 135
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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