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एस धम्मो सनंतनो
कहीं और पहुंच जाती है, हाथ के बाहर हो जाती है। बुद्ध पुरुष भी कुछ कर नहीं सकते इसमें; जानकर ही बोलते हैं कि समझा नहीं जाएगा। समझा नहीं जाएगा, यह जानकर भी बोलते हैं। पूरा सूरज निकले, एक किरण तो पहुंच जाएगी। किरण भी न पहुंचे, किरण का नाम तो पहुंच जाएगा, कोई बीजारोपण हो जाएगा; शायद आज काम न आए, अनंत जन्मों में कभी ठीक समय पर अंकुरित हो उठे।
मैं तुमसे जो आज कह रहा हूं, वह तुम आज समझोगे, यह जरूरी नहीं; लेकिन अगर तुमने सुन भी लिया, गलत भी सुना, तो भी एक बीजारोपण हुआ—कभी न कभी उसमें फल आने शुरू होंगे। ____फिर जब लोग सुनते हैं और लोग ही इकट्ठा करते हैं, लोग ही संगृहीत करते हैं—फिर हजारों साल बीत जाते हैं, उस संग्रह में जुड़ता चला जाता है। अज्ञानियों के हाथ की छाप.बुद्ध पुरुषों के वचनों को मैला करती चली जाती है। धीरे-धीरे हाथं की छापें ही रह जाती हैं। तुम्हारे हस्ताक्षर रह जाते हैं। बुद्ध पुरुषों के हस्ताक्षर बहुत फीके हो-होकर खो जाते हैं। ___ इसलिए भारत में एक अनूठी परंपरा रही है कि जब फिर कोई बुद्ध पुरुष हो तो अतीत के बुद्ध पुरुषों की वाणी को पुनरुज्जीवित करे। तुम्हारे हस्ताक्षर हटाए; तुमने जो धूल-धवांस इकट्ठी कर दी है चारों तरफ, उसे हटाए; दर्पण को फिर निखराए, फिर उघाड़े।
थोड़ी ही देर के लिए धर्म शुद्ध रहता है, बड़ी थोड़ी देर के लिए! तुम्हारे सुनते ही उपद्रव शुरू हो गया। तुम संगठन करोगे। तुम संप्रदाय बनाओगे, तुम शास्त्र निर्मित करोगे। वे शास्त्र, वे संप्रदाय, वे सिद्धांत, वे धर्म तुम्हारे होंगे-बुद्ध पुरुषों के नहीं। बुद्ध पुरुषों का तो बहाना होगा। धीरे-धीरे उनका बहाना भी हट जाएगा। लकीरें रह जाएंगी-मुर्दा। ___ मैंने सुना है, एक घर में पहला विवाह हो रहा था। लड़के की मां बार-बार कह चुकी थी अपने पति को कि तुम एक सफेद बिल्ली ले आओ। उसने हंसकर कई बार टाला कि इसकी क्या जरूरत है। वह बोली कि तुम्हें इन बातों में पड़ने की जरूरत नहीं हैलेकिन तुम बिल्ली ले आओ, अन्यथा विवाह कैसे होगा? घर बहू आएगी, मैं उसका स्वागत कैसे करूंगी? तो उसके पति ने पूछा कि आखिर मैं समझं भी तो, कि बिल्ली का क्या लेना-देना है स्वागत से! उसने कहा, जब मैं घर में आई थी तो तुम्हारी मां ने मुझे मीठा दही खिलाने के लिए एक टोकरे के नीचे दही की मटकी रखी थी, वह टोकरी उठाई थी; मटकी के पास ही एक सफेद बिल्ली बैठी हुई थी। तो मुझे भी बहू का स्वागत करना पड़ेगा, मटकी रखनी पड़ेगी, सफेद बिल्ली बिठानी पड़ेगी। जो होता रहा है, वह करना ही पड़ेगा। रीति-नियम हैं बड़े-बूढ़ों के।
पति ने कहा, पागल! दही खिलाया था, वह तो समझ में आता है। दही तू भी खिला देना। लेकिन बिल्ली कोई उस व्यवस्था का हिस्सा नहीं थी। बिल्ली बैठ गई
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