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________________ एस धम्मो सनंतनो साधारण आदमी इसलिए बोलता है कि बोलने से शायद कुछ मिल जाए; बुद्ध पुरुष इसलिए बोलते हैं कि शायद बोलने से कुछ बंट जाए। बुद्ध पुरुष इसलिए बोलते हैं कि तुम भी साझीदार हो जाओ उनके परम अनुभव में। पर पहले शर्त पूरी करनी पड़ती है—मौन हो जाने की, शून्य हो जाने की। जब ध्यान बोलता है, जब ध्यान की वीणा पर संगीत उठता है, जब मौन मुखर होता है, तब शास्त्र निर्मित होते हैं। जिनको हमने शास्त्र कहा है, वे ऐसे लोगों की वाणी है, जो वाणी के पार चले गए थे। और जब भी कभी कोई वाणी के पार गया, उसकी वाणी शास्त्र हो जाती है, आप्त हो जाती है; उससे वेदों का पुनः जन्म होने लगता है। तो पहले तो मौन को साधो, मौन में उतरो; फिर जल्दी ही वह घड़ी भी आएगी, वह मुकाम भी आएगा, जहां तुम्हारे शून्य से वाणी उठेगी। तब उसमें प्रामाणिकता होगी, सत्य होगा। क्योंकि तब तुम दूसरे के भय के कारण न बोलोगे, तुम दूसरों से कुछ मांगने के लिए न बोलोगे। तब तुम देने के लिए बोलते हो, भय कैसा! कोई ले तो ठीक, कोई न ले तो ठीक। ले ले तो उसका सौभाग्य, न ले तो उसका दुर्भाग्य। तुम्हारा क्या है ? तुमने बांट दिया। जो तुमने पाया तुम बांटते गए। तुम पर यह लांछन न रहेगा कि तुम कृपण थे, जब पाया तो छिपाकर बैठ गए। पर ऐसा कभी हुआ ही नहीं। ऐसा कभी होता ही नहीं। क्योंकि यह पाना कुछ ऐसा है कि इसमें बांटने की अभीप्सा साथ में ही आती है, इसके भीतर ही छिपी आती है। जैसे फूल जब खिलता है तो उस खिलने में ही गंध का बंटना भी छिपा होता है। कोई फूल यह चाहे कि खिल तो जाऊं और बंटू न, तो असंभव होगा। इसलिए ब्रह्मा आए या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, यह कहानी है। बुद्ध को बोलना ही पड़ेगा। जब फूल खिलता है, सुगंध को बिखरना ही पड़ेगा। जब दीया जलता है तो किरणें बरसेंगी ही चारों तरफ; कोई ब्रह्मा की जरूरत नहीं कि दीए से प्रार्थना करे। कहानी तो प्रतीक है-मधुर प्रतीक है। पहले मौन, फिर वाणी में सत्य का अवतरण...! शुभ है। प्रारंभ है। घबड़ा मत जाना। डरना मत। पाखंड टूटने की घड़ी करीब आ रही है। इब्तिदा से आज तक नातिक की है ये सरगुजश्त पहले चुप था, फिर हुआ दीवाना, अब बेहोश है ये तीन घड़ियां आती हैं। __पहले चुप था, फिर हुआ दीवाना... क्योंकि जैसे ही तुम चुप हुए, दुनिया तुम्हें दीवाना कहेगी। इधर तुम चुप हुए कि उधर खबर फैलनी शुरू हुई कि तुम दीवाने हुए, कि तुम पागल हुए। ऐसे दुनिया अपनी रक्षा करती है। ऐसे दुनिया तुम्हें पागल न कहे तो फिर और लोग भी इसी रास्ते 130
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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