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________________ मौन में खिले मुखरता नहीं, सरकते हैं, रेंगते हैं । आवाज बुद्ध को देनी ही पड़ेगी । बुद्ध को राजी करना ही पड़ेगा। जो भी मौन का मालिक हो गया, उसे बोलने के लिए मजबूर करना ही पड़ेगा । कहते हैं, ब्रह्मा सभी देवताओं के साथ बुद्ध के सामने मौजूद हुआ । वे उनके चरणों में झुके। हमने देवत्व से भी ऊपर रखा है बुद्धत्व को । सारे संसार में ऐसा नहीं हुआ । हमने बुद्धत्व को देवत्व से ऊपर रखा है। कारण है : देवता भी तरसते हैं बुद्ध होने को। देवता सुखी होंगे, स्वर्ग में होंगे - अभी मुक्त नहीं हैं, अभी मोक्ष से बड़े दूर हैं। अभी उनकी लालसा समाप्त नहीं हुई, अभी तृष्णा नहीं मिटी, अभी प्यास बुझी नहीं। उन्होंने और अच्छा संसार पा लिया है, और सुंदर स्त्रियां पा ली हैं, और सुंदर पुरुष पा लिए हैं। कहते हैं, स्वर्ग में कंकड़-पत्थर नहीं हैं, हीरे-जवाहरात हैं। कहते हैं, स्वर्ग के जो पहाड़ हैं, वे शुद्ध स्फटिक मणि से बने हैं। कहते हैं, स्वर्ग में जो फूल लगते हैं, वे मुर्झाते नहीं । परम सुख है। लेकिन स्वर्ग से भी गिरना होता है। क्योंकि सुख से भी दुख में लौटना ही पड़ेगा। सुख और दुख एक ही सिक्के के पहलू हैं। कोई नरक में पड़ा है, कोई स्वर्ग में पड़ा है। जो नर्क में पड़ा है वह नरक से बचना चाहता है। जो स्वर्ग में पड़ा है वह स्वर्ग को पकड़े रखना चाहता है । दोनों चिंतातुर हैं। दोनों पीड़ित और परेशान हैं। जो स्वर्ग में पड़ा है, वह भी किसी लोभ के कारण वहां पहुंचा है। जो नरक में पड़ा है, वह भी किसी लोभ के कारण वहां पहुंचा है। एक ने अपने लोभ के कारण पाप किए होंगे, एक ने अपने लोभ के कारण पुण्य किए हैं- लोभ में फर्क नहीं है। बुद्धत्व के चरणों में ब्रह्मा झुका। और उसने कहा कि आप बोलें; आप न बोलेंगे तो महा दुर्घटना हो जाएगी। और एक बार यह सिलसिला हो गया, तो आप परंपरा बिगाड़ देंगे। बुद्ध सदा बोलते रहे हैं। उन्हें बोलना ही चाहिए। जो नू बोलने की क्षमता को पा गए हैं, उनके बोलने में कुछ अंधों को मिल सकता है, अंधेरे में भटकतों को मिल सकता है। आप चुप न हों, आप बोलें। किसी तरह बामुश्किल राजी किया। कहानी का अर्थ इतना ही है कि जब तुम मौन हो जाते हो तो अस्तित्व भी प्रार्थना करता है कि बोलो; वृक्ष और पत्थर और पहाड़ भी प्रार्थना करते हैं कि बोलो; करुणा को जगाते हैं तुम्हारी कि बोलो। तुम जहां पहुंच गए हो वहां और भी बहुत पहुंचना चाहते हैं। उन्हें रास्ते का कोई भी पता नहीं। उन्हें मार्ग का कोई भी पता नहीं; अंधेरे में टटोलते हैं। उन पर करुणा करो, बोलो। तुम भी कल उनके साथ थे, इतनी जल्दी भूल मत जाओ, विस्मरण मत करो। पीछे लौटकर देखो । साधारण आदमी वासना से बोलता है; बुद्ध पुरुष करुणा से बोलते हैं। 129
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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