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________________ एस धम्मो सनंतनो देखता रहता है कि लोग कहां जाना चाहते हैं, पीछे लौट-लौटकर देखता रहता है कि लोग कहां जाना चाहते हैं; जहां लोग जाना चाहते हैं उसी तरफ वह चल पड़ता है। लगता ऐसा है कि वह लोगों के आगे चल रहा है, लोगों का नेता है। असलियत बिलकुल और है। असली नेता वही है जो ठीक से पहचान लेता है, समय के पहले, कि लोग किस तरफ जाएंगे। वही नेता पराजित हो जाता है, जो लोगों को नहीं पहचान पाता कि वे कहां जाना चाहते हैं, और अपनी धांकता है; जल्दी ही पाता है, अकेला रह गया। मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन गधे पर बैठकर जा रहा था, गांव के बाजार से गुजर रहा था। किसी ने पूछा, कहां जा रहे हो? उसने कहा, यह मत पूछो! मेरे गधे से पूछो। क्योंकि पहले तो मैंने इसे बहुत चलाने की कोशिश की, उसमें भद्द होती थी। कहीं रास्ते में अड़ जाए, भीड़-भड़क्का इकट्ठा हो जाए, लोग हंसने लगें, ठिठक जाए, अटक जाए। आखिर मैंने तरकीब सीख ली। मैंने राजनीति सीख ली। अब यह जहां जाता है हम इस पर बैठे रहते हैं। अगर यह ठिठकता है तो हम ऐसा बहाना करते हैं कि हम ही रोके हुए हैं; चल पड़ता है—हमने चलाया। अब हम इस पर ध्यान रखते हैं। तब से कोई फजीहत नहीं होती, कहीं कोई झंझट नहीं आती। जो लोग राजनीति में रहेंगे, धीरे-धीरे पाएंगे, उनका जीवन बिलकुल ही दूसरों के हाथों में पड़ गया। उनका अपना कोई जीवन ही न रहा। कह सकें कुछ अपनी आत्मा, ऐसी कोई चीज उनके पास बचती नहीं। यद्यपि राजनेता कहते हैं, अंतर्वाणी, आत्मा की आवाज! आत्मा ही नहीं है, आत्मा की आवाज कहां से होगी! वह आत्मा की आवाज भी भीड़ की आवाज है। भीड़ से पहले पहचान लेते हैं कि भीड़ कहां जाती है, यह उनकी कुशलता है। भीड़ को भी पता नहीं चलता कि कहां जाना चाहती है; उसके पहले जो पहचान ले, वही नेता है। तब ढोंग बना रहता है। जो व्यक्ति सारी जिंदगी भीड़ में गुजारेगा, दूसरे पर नजर अटकाकर गुजारेगा, वह पाएगा कि धीरे-धीरे भीतर जाने के द्वार अवरुद्ध हो गए। क्योंकि जिन रास्तों का हम उपयोग नहीं करते, वे टूट जाते हैं, बिखर जाते हैं। जिन रास्तों का हम उपयोग नहीं करते, वे रास्ते हमें भूल ही जाते हैं, उनके नक्शे हमें याद नहीं रह जाते। और जिसने दूसरे को ही राजी करने में सारी जिंदगी का रस जाना, वह परिधि पर जीता है। जैसे तुम पड़ोसी को राजी करने के लिए हमेशा अपने मकान की चारदीवारी के पास खड़े होकर उससे बातें करते रहो, ठीक ऐसा ही जब तुम दूसरे को राजी करने में लगे हो, तब अपने से बाहर रहना पड़ता है। मौन तुम्हें अपने भीतर लाएगा। अपने भीतर आओ। वहीं परम राज्य है जीवन का। वहीं स्रोत हैं अनंत। वहीं से जन्म हुआ है, वहीं मौत में डूब जाओगे। वहीं से सूर्य उगा है, वहीं अस्त होगा। उसमें बार-बार डुबकी लो। जब भी तुम डुबकी लगाकर लौटोगे वहां से, तुम पाओगे, फिर ताजे हुए! फिर जीवन की नई संपदा 124
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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