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________________ पुण्यातीत ले जाए, वही साधु-कर्म खाकर लोग दुख पाते हैं, तो शरीर बेडौल होता चला जाता है, बोझ बढ़ता चला जाता है, जीवन-ऊर्जा मंद होती चली जाती है, व्यर्थ का बोझ ढोते हैं। ____ तुम गरीब आदमी को बोझ ढोते देखते हो, तुम्हें दया आती है। तुमने अमीर आदमी को बोझ ढोते नहीं देखा, क्योंकि उसके सिर पर बोझ नहीं है, उसके शरीर में है। यह ज्यादा खतरनाक बोझ है। गरीब तो जाकर थोड़ी दूर इसको गिरा देगा, यह अमीर इसको कहीं न गिरा पाएगा, यह इसको ढोता ही रहेगा। यह वजन इसके भीतर चला गया है। तो एक दफा लोग ज्यादा खाकर दुख पाते हैं, फिर कभी उन्हें थोड़ा होश आता है तो दूसरी अति पर चले जाते हैं। ___ इसलिए एक बड़े मजे की बात है। तुम इससे परीक्षा कर सकते हो। जिस धर्म और जिस समाज में ज्यादा भोजन की सुविधा होगी, उसमें उपवास का महत्व होगा। क्योंकि एक अति लोग करेंगे तो दूसरी अति की जरूरत पड़ेगी। __अब जैन हैं, इस देश में संपन से संपन्न समाज है उनका; उपवास की महत्ता है। गरीब आदमी का जब धर्म-दिन आता है तो उस दिन वह मिष्ठान बनवाता है। अमीर आदमी का जब धर्म-दिन आता है तो वह उपवास करता है। गरीब आदमी का जब धर्म-दिन आता है तो नए कपड़े खरीद लेता है! मुसलमान को देखा ईद में, नए कपड़े पहनकर और-सालभर न बदले हों कपड़े, पर ईद के दिन-खुशी का दिन है। जैनियों को देखा, उनके जब पर्युषण आते हैं तो कपड़े-लत्ते उतारकर साधु-संन्यासी जैसी चदरिया ओढ़कर चले मंदिर की तरफ-उपवास करना है। __ आदमी अतियों में डोलता है। भोग की एक अति है, त्याग की एक अति है। लेकिन तुम्हारी मूढ़ता अगर त्याग से ही मिटती होती तब तो बड़ा आसान मामला था-उपवास कर लेते और ज्ञानी हो जाते। मूढ़ता का क्या संबंध है उपवास से? मूढ़ता ऐसे नहीं टूटती। तुम अगर मूढ़ हो और त्यागी हो गए तो मूढ़ त्यागी रहोगे, बस इतना ही फर्क पड़ेगा। पहले मूढ़ भोगी थे, अब मूढ़ त्यागी हो जाओगे। मूढ़ता छोड़ो! त्याग और भोग का सवाल नहीं है। भोगी हो, मूढ़ हो, तो दो उपाय हैं : या तो भोग को बदलकर त्याग कर दो, मूढ़ तुम भीतर रहोगे। ___मैंने बहुत त्यागी देखे, लेकिन बुद्धिमान मुझे नहीं कोई दिखाई पड़ा। ठीक वैसे ही मूढ़ मिले। जैसे मूढ़ बाजार में बैठे हैं वैसे ही मूढ़ मंदिर में बैठे हैं। वही के वही हैं, कुछ फर्क नहीं हुआ है। एक अति से दूसरी अति पर चले गए हैं। असली क्रांति भोग को त्याग में बदलने में नहीं है, मूढ़ता को बोध में बदलने में है। इसे मैं फिर से तुमसे कह दूं। अगर तुम भोग में खड़े हो तो दो स्थितियां हैं- तुम मूढ़ हो और भोग में खड़े हो; मूढ़ न होते तो भोग में खड़े ही क्यों होते-अब तुम्हारे लिए दो उपाय हैं। एक बिलकुल सुगम है कि भोग को छोड़ दो, 117
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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