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एस धम्मो सनंतनो
समाज, अर्थव्यवस्था! फ्रायड को मानने वाले कहते, समाज, शिक्षा की व्यवस्था, संस्कार! ये तो नाम ही बदले। पुराना नाम भी कुछ बुरा न था। काम तो वही हो रहा है, हम जिम्मेवार नहीं। पहले विधि-विधान, परमात्मा, भाग्य, किस्मत; अब इतिहास, समाज, अर्थशास्त्र, राजनीति! ये सिर्फ नाम बदले हैं, बात तो वही रही कि मैं जिम्मेवार नहीं। एक बात सुनिश्चित रही इन सब में कि मैं जिम्मेवार नहीं। . और धार्मिक व्यक्ति का जन्म तभी होता है, जब तुम स्वीकार करते हो कि मैं जिम्मेवार हूं। जिस दिन तुमने स्वीकार किया कि मैं जिम्मेवार हूं, तुम्हारी जिंदगी में क्रांति आई, इंकलाब आया, अब कोई रोक न सकेगा। क्योंकि अब तुम खुद मालिक हुए। तुमने स्वीकार कर लिया, मैं जिम्मेवार हूं, तो इसका अर्थ हुआ कि अब तुम चाहो तो बदल दो। अतीत को तो बदलने का सवाल नहीं, भविष्य बदला जा सकता है। और भविष्य बदल गया तो अतीत भी बदल जाएगा; क्योंकि जो अभी भविष्य है, कल अतीत हो जाएगा। वर्तमान बदला जा सकता है। कम से कम अब तो बीज न बोओ जहर के। ___'जब तक पाप पक नहीं जाता, तब तक मूढ़ उसे मधु के समान मीठा समझता
समझता है बस। मान्यता है उसकी। और कितनी बार आदमी दोहराता है! चकित होना पड़ता है! जब तुम भी कभी जागोगे तो हैरान होओगे, तुमने उन्हीं-उन्हीं भूलों को कितना दोहराया! तुम कोई ग्रामोफोन के टूटे रिकार्ड हो कि सुई फंस गई
और दोहराए चली जा रही है एक ही लकीर। ___'यदि मूढ़ महीने-महीने कुश की नोक से भोजन करे तो भी वह धर्मज्ञों के सोलहवें भाग के बराबर नहीं हो सकता।'
अब बुद्ध कहते हैं कि यह भी तुम्हें समझ में आ जाए कि मैं ही जिम्मेवार हूं, मैंने ही पाप के बीज बोए, और मैंने ही पाप के फल काटे और दुख काटा, और दुख भोगा—तो एक खतरा है, वह खतरा यह है कि कहीं तुम दूसरी अति पर न चले जाना। अभी तक भोगी थे, पाप के बीज बोते थे; अब कहीं त्यागी मत हो जाना। अति पर न चले जाना।
बुद्ध का मार्ग मज्झिम निकाय है। बुद्ध ने कहा है, मेरा मार्ग बीच का है, अतियों से बचाने वाला है।
भोगी एक अति पर है, त्यागी दूसरी अति पर है। बुद्ध उसे ही धर्मज्ञ कहते हैं, जो मध्य में खड़ा हुआ, जिसने अतियां त्याग दीं। ___'यदि मूढ़ महीने-महीने कुश की नोक से भोजन करे...।'
जैसा कि मूढ़ कर रहे हैं। कोई उपवास कर रहा है, उपवास के हिसाब रख रहे हैं। पहले भोजन में अति की थी, उसका दुख पाया था, अब उपवास करके दुख पा रहे हैं। कुछ ऐसा लगता है कि दुख पाने की तुमने जिद्द ही कर रखी है। या तो ज्यादा
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