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________________ एस धम्मो सनंतनो मरने लगे। उसकी खुशी वापस लौट आई। लेकिन ध्यान रखना, जब दूसरे की दो आंखें फोड़नी हों तो पहले अपनी एक तो कम से कम फोड़ ही लेनी पड़ती है। और इस कहानी में कहीं भूल हो गई है, क्योंकि मेरे जाने मामला ठीक उलटा है : पड़ोसी की एक फोड़नी हो तो अपनी दो फूट जाती हैं। दूसरे को दुख देने की अकांक्षा में ही तुमने पाप किया है। दूसरे को दुख देकर सुख पाने की आकांक्षा में ही तुमने पाप के बीज बोए हैं। अब उन्हें छिपाओ मत। अब उन्हें उघाड़ो। अब उन्हें खुली आंख के सामने रखो। उनके साक्षी बनो। ___अपनी पूरी जिंदगी को शास्त्र समझो; उसमें ही सारा सार छिपा है। और अगर तुमने अपनी भूलें ठीक से देख लीं, तो तुम्हें कहीं और सीखने जाना न पड़ेगा। तुम्हारा गुरु तुम्हारे जीवाश्में छिपा है; वहीं से तुम्हें बोध की किरण मिलेगी; वहीं से तुम्हारे जीवन में क्रांति शुरू हो जाएगी। ___अब ध्यान रखना कि भूल दूसरी मत कर लेना। अब तक दूसरों को दुख देने की भूल की थी; अब कहीं यह मत कर लेना दूसरी भूल कि अब तक दूसरों को दुख दिया, अब दूसरों को सुख दूंगा। यही भूल धार्मिक लोग कर रहे हैं। मेरी शिक्षा बिलकुल भिन्न है। मैं कहता हूं, तुमने पहले भी भूल की थी दूसरों को दुख देने की, वह दुख देने की भूल न थी-दूसरों को देने की थी। अब भी तुम वही भूल दोहरा रहे हो-अब तुम दूसरों को सुख देना चाहते हो। बहुत से लोग दूसरों को सुख देने में ही जीवन गंवा देते हैं। कौन किसको सुख दे पाया? कौन कैसे किसी को सुख दे सकता है ? सुख तो साक्षी-भाव से आता है। तुम दूसरे को कैसे साक्षी बना सकते हो? तुम साक्षी बन सकते हो, दूसरा भी बन सकता है। लेकिन कोई किसी को साक्षी कैसे बना सकता है? तो दूसरे से छुटकारा पुण्य है। अब हम बुद्ध के सूत्र को समझें। 'वह काम शुभ नहीं, जिसे करके पीछे मनुष्य को पछताना पड़े और जिसके फल को आंसू बहाते और विलाप करते हुए भोगना पड़े।' । वह काम शुभ नहीं! कसौटी?—जिसको करके पीछे पछताना पड़े। ___तो जिन-जिन कर्मों को करके तुम पीछे पछताए हो, कृपा करो, आगे अब उन्हें मत करो। यद्यपि तकलीफ यही है कि पाप का पता पीछे से चलता है; जब हो जाता है तब पता चलता है। पहले से पता नहीं चलता। पहले से पता चलने का कोई कारण भी नहीं है। कांटा जब चुभेगा तभी तो पीड़ा होगी। जब तक चुभे न, पीड़ा कैसे होगी? हाथ जब आग में डालोगे तभी तो जलेगा; हाथ डालोगे ही नहीं तो जलेगा कैसे? माना, इसलिए थोड़े-बहुत पाप करने की संभावना सभी के लिए है। लेकिन उसी आग में बार-बार हाथ डालने का कोई कारण समझ में नहीं आता। एक बार 106
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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