SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो अपने गुजरे हुए ऐयाम से नफरत है मुझे और ध्यान रखना, जब तुम्हें अपने अतीत से नफरत हो, तो तुम्हें अपने से नफरत हो जाएगी। तुम्हारा अतीत तुम हो। और ध्यान रखना ___ अपनी बेकार तमन्नाओं पे शरमिंदा हूं और अगर तुम्हारी जिंदगी में पश्चात्ताप है, घाव की तरह शर्म है। जो किया, जो करना चाहा, जो करना चाहते थे न कर पाए, जो हुआ—अगर उस सब के प्रति शर्मिंदगी है, तो तुम आज खिल न सकोगे। इतना बोझ लिए कौन फूल कब खिल पाता है? अपनी बेसूद उम्मीदों पे नदामत है मुझे मेरे माजी को अंधेरे में दबा रहने दो यही हम सब करते हैं, अतीत को अंधेरे में सरकाए जाते हैं, जैसे था ही नहीं। इतना आसान नहीं छुटकारा। क्योंकि तुम अतीत के ही फैले हुए हाथ हो। अंधेरे में किसको हटाते हो? अपने को ही हटाते हो। हटाकर भी हटाया नहीं जा सकता। छिपा सकते हो ज्यादा से ज्यादा। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि आदमी ने इसी हटाने और छिपाने की कोशिश में अपने मन के दो खंड कर लिए हैं : एक चेतन और एक अचेतन। अचेतन यानी अंधेरे में हटाया हुआ। हम सरकाए चले जाते हैं। जैसे घर में इंतजाम कर लेते हैं लोग, कूड़ा-करकट इकट्ठा करने की एक जगह बना लेते हैं, व्यर्थ की चीजों को एक कमरे में फेंकते चले जाते हैं। उस कमरे में जीते नहीं। ऐसा ही मन में भी हमने किया है। जो-जो व्यर्थ है, उसे फेंकते चले जाते हैं। और करीब-करीब व्यर्थ ही व्यर्थ है। ढेर बढ़ता चला जाता है। अपने ही घर में रहने की जगह नहीं रह जाती। अपने ही घर में तुम्हें घर के बाहर रहना पड़ता है। घर तो भरा है कूड़ा-करकट से। मेरे माजी को अंधेरे में दबा रहने दो मेरा माजी मेरी जिल्लत के सिवा कुछ भी नहीं तुमने कभी गौर किया? अतीत को अगर तुम खोलकर रखो किताब की तरह तो हजार-हजार आंसू रोओगे। कहीं भी सकून न मिलेगा। कहीं भी तुम छाया न पाओगे, जहां दो क्षण को विश्राम कर लो। जलते हुए मरुस्थल पाओगे। मेरी उम्मीदों का हासिल मेरी काविश का सिला एक बेनाम अजीयत के सिवा कुछ भी नहीं एक व्यर्थ की दौड़-धूप थी, एक आपाधापी थी। जिसमें किया बहुत, पाया कुछ भी नहीं। अब करना क्या है? क्या किया जा सकता है?. इसे छिपाओ मत अपने से। इससे भयभीत भी मत होओ। वस्तुतः इसे गौर से देखो। इसका ठीक से विश्लेषण करो। इसके साक्षी बनो। क्योंकि इसको तुम ठीक 104
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy