________________
एस धम्मो सनंतनो
निया है तहलके में तो परवा न कीजिए
यह दिल है रूहे-अस्र का मसकन बचाइए दिल बुझ गया तो जानिए अंधेर हो गया
एक शमा आंधियों में है रोशन बचाइए संसार बदलता है, फिर भी बदलता नहीं। संसार की मुसीबतें तो बनी ही रहती हैं। वहां तो तूफान और आंधी चलते ही रहेंगे। अगर किसी ने ऐसा सोचा कि जब संसार बदल जाएगा तब मैं बदलूंगा, तो समझो कि उसने न बदलने की कसम खा ली। तो समझो कि उसकी बदलाहट कभी हो न सकेगी। उसने फिर तय ही कर लिया कि बदलना नहीं है, और बहाना खोज लिया।
बहुत लोगों ने बहाने खोज रखे हैं। वे कहते हैं, संसार ठीक हालत में नहीं है, हम ठीक होना भी चाहें तो कैसे हो सकेंगे? अंधे हैं ऐसे लोग; क्योंकि संसार कभी ठीक नहीं हुआ, फिर भी व्यक्तियों के जीवन में फूल खिले हैं। कोई बुद्ध रोशन हुआ, कोई कृष्ण, कोई क्राइस्ट सुगंध को उपलब्ध हुए हैं। संसार तो चलता ही रहा है। ऐसे ही चलता रहेगा। संसार के बदलने की प्रतीक्षा मत करना। अन्यथा तुम बैठे रहोगे प्रतीक्षा करते, अंधेरे में ही जीयोगे, अंधेरे में ही मरोगे। और संसार तो सदा है। तुम अभी हो, कल विदा हो जाओगे।
इसलिए एक बात खयाल में रख लेनी है, बदलना है स्वयं को। और कितने ही तूफान हों, कितनी ही आंधियां हों, भीतर एक ऐसा दीया है कि उसकी शमा जलाई जा सकती है। और कितना ही अंधकार हो बाहर, भीतर एक मंदिर है जो रोशन हो सकता है।
तुम बाहर के अंधेरे से मत परेशान होना। उतनी ही चिंता और उतना ही श्रम भीतर की ज्योति को जलाने में लगा देना। और बड़े आश्चर्य की तो बात यही है कि जब भीतर प्रकाश होता है, जब तुम्हारी आंखों के भीतर प्रकाश होता है, तो बाहर अंधकार मिट जाता है। कम से कम तुम्हारे लिए मिट जाता है। तुम एक और दूसरे ही जगत में जीने लगते हो। और हर व्यक्ति परमात्मा की धरोहर है। कुछ है, जो तुम पूरा करोगे तो ही मनुष्य कहलाने के अधिकारी हो सकोगे।
एक अवसर है जीवन, जहां कुछ सिद्ध करना है। जहां सिद्ध करना है कि हम बीज ही न रह जाएंगे, अंकुरित होंगे, खिलेंगे, फूल बनेंगे। सिद्ध करना है कि हम संभावना ही न रह जाएंगे, सत्य बनेंगे। सिद्ध करना है कि हम केवल एक आकांक्षा ही न होंगे कुछ होने की, हमारे भीतर होना प्रगट होगा। उस प्रागट्य का नाम ही बुद्धत्व है।
दुनिया है तहलके में तो परवा न कीजिए यह दिल है रूहे-अस्र का मसकन बचाइए
54