SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो चौथा प्रश्नः मेरी हालत त्रिशंकु की हो गई है। न पीछे लौट सकती, न आगे कोई रास्ता दिखाई पड़ता है। जाऊं तो जाऊं कहां? जाने को कहीं है भी नहीं। जहां हो वहीं होना है। 'अच्छा ही हुआ कि आगे कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ता, नहीं तो जाना जारी रहता। अच्छा है कि पीछे भी लौट नहीं सकते, नहीं तो लौट जाते। इससे बेचैनी मत अनुभव करो। बेचैनी अनुभव होती है, यह मैं समझता हूं। क्योंकि जाने की आदत हो गई है। कहीं जाने को न हो, तो आदमी घबड़ाता है। बेकार भी जाने को हो, तो भी निश्चित चला जाता है। ___ कहां जा रहे हैं, इसका इतना सवाल नहीं है। जा रहे हैं, कुछ काम चल रहा है। लगता है कुछ हो रहा है, कहीं पहुंच रहे हैं। मंजिल की किसको फिकर है। व्यस्तता बनी रहती है। चलने में उलझे रहते हैं। तो लगता है कुछ हो रहा है। ___ कौन कहां पहुंचा है चलकर? तुम भी न पहुंचोगे। कोई कभी चलकर नहीं पहुंचा। जो पहुंचे, रुककर पहुंचे। जिन्होंने जाना, ठहरकर जाना। देखो बुद्ध की प्रतिमा को। चलते हुए मालूम पड़ते हैं? बैठे हैं। जब तक चलते थे तब तक न पहुंचे। जब बैठ गये, पहुंच गये। यह तो बड़ी शभ घड़ी है। लेकिन हमारी आदतें खराब हो गयीं। हमारी आदतें चलने की हो गई हैं। बिना चले ऐसा लगता है, जीवन बेकार जा रहा है। चाहे चलना हमारा कोल्हू के बैल का चलना हो कि गोल चक्कर में घूमते रहते हैं। है वही। रोज तुम उठते हो, करते क्या हो? रोज चलते हो, पहुंचते कहां हो? सांझ वहीं आ जाते हो जहां सुबह निकले थे। जन्म जहां से शुरू किया मौत वहीं ले आती है। एक गोल वर्तुलाकार है। ____ मैंने सुना है कि एक बहुत बड़ा तार्किक तेल खरीदने गया था तेली के घर। तेली का कोल्हू चल रहा था। बैल कोल्हू खींच रहा था, तेल निचुड़ रहा था। तार्किक था! उसने देखा यह काम, कोई हांक भी नहीं रहा है बैल को, वह अपने आप ही चल रहा है। उसने पूछा, गजब, यह बैल अपने आप चल रहा है। कोई हांक भी नहीं रहा! रुक क्यों नहीं जाता? उस तेल वाले ने कहा, महानुभाव, जब कभी यह रुकता है, मैं उठकर इसको फिर हांक देता हूं। इसको पता नहीं चल पाता कि हांकने वाला पीछे मौजूद है या नहीं। तार्किक तार्किक था। उसने कहा, लेकिन तुम तो बैठे दुकान चला रहे हो, इसको दिखाई नहीं पड़ता? उस तेल वाले ने कहा, जरा गौर से देखें, इसकी आंखों 236
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy