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________________ प्रेम की आखिरी मंजिल : बुद्धों से प्रेम झांककर कहूंगा, एस धम्मो सनंतनो। क्योंकि चाहे गुलाब हो, चाहे आंख हो, चाहे चांद हो, सौंदर्य एक है। __बहुत रूपों में परमात्मा प्रगट हुआ है। हमारे अंधेपन की कोई सीमा नहीं। इतने रूपों में प्रगट हुआ है और हम पूछे चले जाते हैं, कहां है? कहीं एकाध रूप में प्रकट होता तब तो मिलने का कोई उपाय ही न था। इतने रूपों में प्रगट हुआ है। सब तरफ से उसने ही तुम्हें घेरा है। जहां जाओ, वही सामने आ जाता है। जिससे मिलो, उसी से मिलना होता है। सुनो झरने की आवाज, तो उसी का गीत सुनो रात का सन्नाटा, तो उसी का मौन; देखो सूरज को, तो उसी की रोशनी; और देखो अमावस को, तो उसी का अंधेरा। इतने रूपों में तुम्हें घेरा है, फिर भी तुम चूकते चले जाते हो। अभागा होता मनुष्य अगर कहीं उसका एक ही रूप होता, एक ही मंदिर होता और केवल वह एक ही जगह मिलता होता। तब तो फिर कोई शायद पहुंच ही न पाता। इतने रूपों में मिलता है, फिर भी हम चूक जाते हैं। तो मैं बहुत जगह तुमसे कहूंगा, यह रहा परमात्मा! इसका यह मतलब नहीं कि बहुत परमात्मा हैं। इसका इतना ही मतलब कि बहुत उसके रूप हैं। अनेक उसके ढंग हैं। अनेक उसकी आकृतियां हैं। लेकिन वह स्वयं इन सभी आकृतियों के बीच निराकार है। होगा भी। क्योंकि इतने रूप उसी के हो सकते हैं, जो अरूप हो। इतने आकार उसी के हो सकते हैं जो निराकार हो। इतने अनंत-अनंत माध्यमों में वही प्रगट हो सकता है जो प्रगट होकर भी पूरा प्रगट न हो पाता हो। .. बंदगी ने हजार रुख बदले । जो खुदा था वही खुदा है हनूज प्रार्थनाएं बदल जाती हैं। बंदगी के ढंग बदल जाते हैं। पूजा बदल जाती है। कभी गुरुद्वारा, कभी मस्जिद, कभी शिवाला; कभी काबा, कभी काशी। बंदगी ने हजार रुख बदले न मालूम कितने पत्थरों के सामने सिर झुके, और न मालूम कितने शब्दों में उसकी प्रार्थना की गई, और न मालूम कितने शास्त्र उसके लिए रचे गये। बंदगी ने हजार रुख बदले जो खुदा था वही खुदा है हनूज लेकिन आज तक जो खुदा था वही खुदा है। तो बहुत बार मैं कहूंगा, एस धम्मो सनंतनो। यही है सनातन धर्म। इससे तुम यह मत समझ लेना कि यही है। इससे तुम इतना ही समझना कि यहां भी है। और बहुत जगह भी है। सभी जगह है। सभी जगह उसका विस्तार है। वह तुम्हारे आंगन जैसा नहीं है, आकाश जैसा है। यद्यपि तुम्हारे आंगन में भी वही आकाश है। 235
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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