SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रेम की आखिरी मंजिल : बुद्धों से प्रेम उपनिषद, गीता कुएं में डाल दीं। मैंने उससे कहा, पागल ! मैंने वेद-उपनिषद को पकड़ना मत, इतना ही कहा था। कुएं में डाल आना, यह मैंने न कहा था । यह तूने क्या किया ? वेद-उपनिषद को न पकड़ो तो ही वेद-उपनिषद समझ में आते हैं। वेदउपनिषद को समझने की कला यही है कि उनको पकड़ मत लेना, उनको सिर पर मत ढ़ो लेना। उनको समझना । समझ मुक्त करती है। समझ उससे भी मुक्त कर देती है जिसको तुमने समझा। कुएं में क्यों फेंक आया? और तू सोचता है कि तूने कोई बड़ी क्रांति की, मैं नहीं सोचता। क्योंकि अगर वेद-उपनिषद व्यर्थ थे, तो आधी रात में कुएं तक ढोने की भी क्या जरूरत थी ? जहां पड़े थे पड़े रहने देता । कुएं में फेंकने वही जाता है, जिसने सिर पर बहुत दिन तक सम्हालकर रखा हो। कुएं में फेंकने में भी आसक्ति का ही पता चलता है। तुम उसी से घृणा करते हो जिस से तुमने प्रेम किया हो। तुम उसी को छोड़कर भागते हो जिससे तुम बंधे थे । एक संन्यासी मेरे पास आया और उसने कहा, मैंने पत्नी-बच्चे सबका त्याग कर दिया। मैंने उससे पूछा, वे तेरे थे कब ? त्याग तो उसका होता है जो अपना हो । पत्नी तेरी थी ? सात चक्कर लगा लिए थे आग के आसपास, उससे तेरी हो गई थी ? बच्चे तेरे थे? पहली तो भूल वहीं हो गई कि तूने उन्हें अपना माना । और फिर दूसरी भूल यह हो गई कि उनको छोड़कर भागा । छोड़ा वही जा सकता है जो अपना मान लिया गया हो। बात कुल इतनी है, इतना ही जान लेना है कि अपना कोई भी नहीं है, छोड़कर क्या भागना है ! छोड़कर भागना तो भूल की ही पुनरुक्ति है। जिन्होंने जाना, उन्होंने कुछ भी छोड़ा नहीं । जिन्होंने जाना, उन्होंने कुछ भी पकड़ा नहीं । जिन्होंने जाना, उन्हें छोड़ना नहीं पड़ता, छूट जाता है। क्योंकि जब दिखाई पड़ता है कि पकड़ने को यहां कुछ भी नहीं है, तो मुट्ठी खुल जाती है। बुद्ध की मृत्यु हुई – तब तक तो किसी ने बुद्ध का शास्त्र लिखा न था, ये . धम्मपद के वचन तब तक लिखे न गये थे - तो बौद्ध भिक्षुओं का संघ इकट्ठा हुआ। जिनको याद हो, वे उसे दोहरा दें, ताकि लिख लिया जाए। बड़े ज्ञानी भिक्षु थे, समाधिस्थ भिक्षु थे। लेकिन उन्होंने तो कुछ भी याद न रखा था । जरूरत ही न थी । समझ लिया, बात पूरी हो गई थी। जो समझ लिया, उसको याद थोड़े ही रखना पड़ता है। तो उन्होंने कहा कि हम कुछ कह तो सकते हैं, लेकिन वह बड़ी दूर की ध्वनि होगी। वे ठीक-ठीक वही शब्द न होंगे जो बुद्ध के थे । उसमें हम भी मिल गये हैं। वह हमारे साथ इतना एक हो गया है कि कहां हम, कहां बुद्ध, फासला करना मुश्किल है। तो अज्ञानियों से पूछा कि तुम कुछ कहो, ज्ञानी तो कहते हैं कि मुश्किल है तय करना। हमारी समाधि के सागर में बुद्ध के वचन खो गये। अब हमने सुना, हमने कहा कि उन्होंने कहा, इसकी भेद-रेखा नहीं रही । जब कोई स्वयं ही बुद्ध हो 223
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy