________________
तथाता में है क्रांति जिसने अपनी गीता को ठीक कर लिया। अर्जुन रथ में बैठ गया, कृष्ण सारथी हो गए, वही संन्यासी है। वही स्वामी है।
और स्वामी होना ही एकमात्र जीवन है। तब तुम जीते ही नहीं, तुम जीवन हो जाते हो। तुम महाजीवन हो जाते हो। सब बदल जाता है। कल तक जहां कांटे थे, वहां फूल खिल जाते हैं। और कल तक जो भटकाता था, वही तुम्हारा अनुचर हो जाता है। कल तक जो इंद्रियां केवल दुख में ले गई थीं, वे तुम्हें महासुख में पहुंचाने लगती हैं। क्योंकि जिन इंद्रियों से तुमने संसार को पहचाना है, वे ही इंद्रियां तुम्हें परमात्मा के दर्शन दिलाने लगेंगी। उनको ही झलक मिलेगी।
यही आंखें — ध्यान रखना, फिर से दोहराता हूं—यही आंखें उसे देखने लगेंगी। और इन्हीं आंखों ने पर्दा किया था । इन्हीं आंखों के कारण वह दिखाई न पड़ता था । इन आंखों को फोड़ मत लेना, जैसा कि बहुत से नासमझ तुम्हें समझाते रहे हैं। ये आंखें बड़े काम में आने को हैं, सिर्फ भीतर का इंतजाम बदलना है। जो मालिक है असली में, उसे मालिक घोषित करना है। बस उतनी घोषणा काफी है। जो गुलाम है उसे गुलाम घोषित करना है।
तुम्हारे भीतर गुलाम मालिक बनकर बैठ गया है, और मालिक को अपनी मालकियत भूल गई है। इसलिए आंखों से पदार्थ दिखाई पड़ता है, परमात्मा नहीं । कानों से शब्द सुनाई पड़ता है, निःशब्द नहीं। हाथों से केवल वही छुआ जा सकता है जो रूप है, आकार है, निराकार का स्पर्श नहीं होता। मैं तुमसे कहता हूं, जैसे ही तुम्हारे भीतर का इंतजाम बदलेगा - मालिक अपनी जगह लेगा, गुलाम अपनी जगह लेगा, चीजें व्यवस्थित होंगी, तुम्हारा शास्त्र शीर्षासन न करेगा, ठीक जैसा होना चाहिए वैसा हो जाएगा — तत्क्षण तुम पाओगे इन्हीं आंखों से निराकार की झलक मिलने लगी, पदार्थ से परमात्मा झांकने लगा ।
-
पदार्थ सिर्फ घूंघट है। वही प्रेमी वहां छिपा है। और इन्हीं कानों से तुम्हें शून्य का स्वर सुनाई पड़ने लगेगा। यही कान ओंकार के नाद को भी ग्रहण कर लेते हैं। कान की भूल नहीं हैं। आंख की भूल नहीं है । इंद्रियों ने नहीं भटकाया है, सारथी बेहोश है। घोड़ों ने नहीं भटकाया है। घोड़े भी क्या भटकाएंगे? और घोड़ों को जिम्मेवारी सौंपते तुम्हें शर्म भी नहीं आती।
और तुम्हारे साधु-संन्यासी तुमसे कहे जाते हैं, घोड़ों ने भटकाया है। घोड़े क्या भटकाएंगे? और जिसको घोड़े भटका देते हों, वह पहुंच न पाएगा। जो घोड़ों को भी न सम्हाल सका, वह क्या सम्हालेगा? वह पहुंचने योग्य ही न था । उसकी कोई पात्रता ही न थी, जिसको घोड़ों ने भटका दिया।
नहीं, भटके तुम हो। लगाम तुम्हारी ढीली है। घोड़े तो बस घोड़े हैं। उनके पास कोई होश तो नहीं। जब तुम बेहोश हो, तो घोड़ों से होश की अपेक्षा रखते हो ! जब तुम्हारा चैतन्य सोया हुआ है, तो इंद्रियों से तुम चैतन्य की अपेक्षा रखते हो ! इंद्रियां
5