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जागरण का तेल + प्रेम की बाती = परमात्मा का प्रकाश
है, तो उसके साथ हम भी ऊंचे उठते हैं। और हमारे बीच से कोई एक भी नीचे गिरता है, तो उसके साथ हम भी नीचे गिरते हैं। हिटलर या मुसोलिनी के साथ हम भी बड़ी गहन दुर्गंध और पीड़ा का अनुभव करते हैं। बुद्ध और महावीर, कृष्ण और क्राइस्ट के साथ हम भी उनके पंखों पर सवार हो जाते हैं। हम भी उनके साथ आकाश का दर्शन कर लेते हैं। .
_ 'चंदन या तगर, कमल या जूही, इन सभी की सुगंधों से शील की सुगंध सर्वोत्तम है।'
क्यों? चंदन की सुगंध आज है, कल नहीं होगी। सुबह खिलता है फूल, सांझ मुरझा जाता है। खिला नहीं कि मुरझाना शुरू हो जाता है। इस जीवन में शाश्वत तो केवल एक ही घटना है, वह है तुम्हारे भीतर चैतन्य की धारा, जो सदा-सदा रहेगी। एक बार खिल जाए, तो फिर भीतर के फूल कभी मुरझाते नहीं। उन्होंने मुरझाना जाना ही नहीं है। वे केवल खिलना ही जानते हैं। और खिल जाने के बाद वापसी नहीं है, लौटना नहीं है। .. ऊंचाई पर तुम जब पहुंचते हो, तो वहां से वापस गिरना नहीं होता। जो सीख लिया, सीख लिया। जो जान लिया, जान लिया। जो हो गए, हो गए। उसके विपरीत जाने का उपाय नहीं है। जो गिर जाए ऊंचाई से, समझना ऊंचाई पर पहुंचा ही न था। क्योंकि ऊंचाई से गिरने का कोई उपाय नहीं। जो तुमने जान लिया उसे तुम भूल न सकोगे। अगर भूल जाओ तो जाना ही न होगा। सुन लिया होगा, स्मरण कर लिया होगा, कंठस्थ हो गया होगा। जीवन के साधारण फूल आज हैं, कल नहीं। चैतन्य का फूल सदा है।
तो बहुत बाहर के फूलों में मत भरमे रहना, भीतर के फूल पर शक्ति लगाना। कब तक हंसते और रोते रहोगे बाहर के फूलों के लिए? फूल खिलते हैं, हंस लेते हो; फूल मुरझा जाते हैं, राख हो जाते हैं, रो लेते हो।
सिवा इसके और दुनिया में क्या हो रहा है।
कोई हंस रहा है कोई रो रहा है सारी दुनिया को तुम इन दो हिस्सों में बांट दे सकते हो।
अरे चौंक यह ख्वाबे-गफलत कहां तक अब यह सपना और कब तक खींचना है? काफी खींच लिया है।
अरे चौंक यह ख्वाबे-गफलत कहां तक
सहर हो गई है और तू सो रहा है। सुबह हो गई है। सुबह सदा से ही रही है। ऐसा कभी हुआ ही नहीं कि सुबह न रही हो। सुबह होना ही अस्तित्व का ढंग है, अस्तित्व की शैली है। वहां सांझ कभी होती नहीं। तुम सो रहे हो इसलिए रात मालूम होती है।
इसे थोड़ा समझ लो। रात है इसलिए सो रहे हो, ऐसा नहीं है; सो रहे हो
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