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है, उसके साथ — मानव-कल्याण के लिए या विश्व-कल्याण के लिए — हस्तक्षेप करना आवश्यक है। कर्म-द - दायाद बनना दूसरी बात है। किंतु, अनासक्ति - पूर्वक कुशल-कर्म और कल्याण-कारक कर्म करते रहना अपेक्षित है। अन्यथा अनीति, अन्याय और क्लेश का महिषासुर रंभाता हुआ निर्बंध घूमता रहेगा । इसलिए बुद्ध का शासन भी स्वचित्त के संशोधन तक सीमित नहीं है । वह सभी पापों के अकरण और सभी कुशलों के संपादन को करणीय मानता है। 'धम्मपद' की निम्नलिखित गाथा इस दृष्टि से मनन करने योग्य है—
सब्बपापस्स अकरणं कुसलस्स उपसंपदा ।
सचित्तपरियोदपनं एतं बुद्धान सासनं ।।
जेतवन में आनंद थेर को दिया गया बुद्ध का यह परित्राणकारी उपदेश ओशो की व्याख्या के माध्यम से विश्व में फैले – मेरी यही कामना और प्रार्थना है। तभी 'कुशल कर्म' 'पाप कर्म' को ढंक सकेगा, विश्व की आर्ति का हरण हो सकेगा और यह लोक कुशल कर्म से उसी तरह उद्भासित हो सकेगा, जिस तरह मेघ-मुक्त चांद की चंद्रिका से दिग-दिगंत प्रभासित हो जाता है।
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डा.
यस्स पापं कतं कम्मं कुसलेन पिथीयति । स इमं लोकं पभासेति अब्भा मुत्तो व चंदिमा ।।
. विमल
कुमार.
डा. कुमार विमल का हिंदी साहित्य जगत में अपना ही स्थान है । कविता, कहानी, आलोचनात्मक एवं गवेषणात्मक निबंध, संपादन आदि साहित्य के लगभग सभी आयामों में डा. विमल ने उत्कृष्ट कृतियां दी हैं। आपके प्रकाशित काव्य-संग्रहों में 'ये सम्पुट सीपी के', 'अंगार' तथा 'सर्जना के स्वर' उल्लेखनीय हैं। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय साहित्य संगोष्ठियों में पश्चिम जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, यू.एस.एस. आर. आदि विभिन्न देशों में सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व करने के साथ ही साथ आपकी रचनाओं का चेक, अंग्रेजी, तेलुगु, कश्मीरी, मराठी आदि कई भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। डा. विमल अपने साहित्यिक जीवन में साहित्य अकादमी, दिल्ली, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर आदि विभिन्न संस्थाओं के प्रतिष्ठित पदों पर कार्य कर चुके हैं एवं इनकी बहुत सी कृतियां पुरस्कृत हो चुकी हैं। सम्प्रति डा. विमल, नालंदा खुला विश्वविद्यालय, नालंदा (पटना) के कुलपति पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
- गाथा संख्या 173, धम्मपद ।