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________________ एस धम्मो सनंतनो जिसने दूसरों के पाप देखे, वह अपने पुण्य गिनता है। चोरी तुम हजार रुपए की करो तो तुम भुला देते हो। दान तुम एक पैसे का दो तो तुम याद रखते हो। एक पैसे का दान भी बहुत बड़ा मालूम पड़ता है। हजार रुपए की चोरी भी छोटी मालूम पड़ती है। शायद हजार रुपए की चोरी करके, तुम एक पैसे का दान देकर उसका निपटारा कर लेना चाहते हो। थोड़ा सोचो, धार्मिक लोगों ने कैसी-कैसी तरकीबें निकाली हैं। पाप करते हैं, गंगा में स्नान कर आते हैं। अब गंगा में स्नान करने का और पाप के मिटने से क्या संबंध हो सकता है! दूर का भी कोई संबंध नहीं हो सकता। गंगा का कसूर क्या है, पाप तुमने किया! और ऐसे अगर गंगा धो-धोकर सबके पाप लेती रही, तो गंगा के लिए तो नर्क में भी जगह न मिलेगी। इतने पाप इकट्ठे हो गए होंगे! और अगर इतना ही आसान हो पाप तुम करो, गंगा में डुबकी लगा आओ और पाप हल हो जाएं-तब तो पाप करने में बुराई ही कहां रही? सिर्फ गंगा तक आने-जाने का श्रम है। तो जो गंगा के किनारे ही रह रहे हैं, उनका तो फिर कहना ही क्या! तुमने तीर्थ बना लिए। तुमने छोटे-छोटे पुण्य की तरकीबें बना लीं, ताकि बड़े-बड़े पापों को तुम झुठला दो, भुला दो। छोटा-मोटा अच्छा काम कर लेते हो, अस्पताल को दान दे देते हो-दान उसी चोरी में से देते हो जिसका प्रायश्चित्त कर रहे हो-लाख की चोरी करते हो, दस रुपया दान देते हो। लेकिन लाख की चोरी को दस रुपए के दान में ढांक लेना चाहते हो! तुम किसे धोखा दे रहे हो? या, इतना भी नहीं करता कोई। रोज सुबह बैठकर पांच-दस मिनट माला जप लेता है। माला के गुरिए सरका लेता है, सोचता है हल हो गया। या राम-राम जप लेता है। या रामनाम छपी चदरिया ओढ़ लेता है। सोचता है मामला हल हो गया। जैसे राम पर कुछ एहसान हो गया। अब राम समझें! चदरिया ओढ़ी थी। कहने को अपने पास बात हो गई। मंदिर गए थे, हिसाब रख लिया है। ___ जीवन अंधेरे से भरा रहे और प्रकाश की ज्योति भी नहीं जलती! सिर्फ अंधेरी दीवालों पर तुम प्रकाश शब्द लिख देते हो, या दीए के चित्र टांग देते हो। प्यास लगी हो तो पानी शब्द से नहीं बुझती। अंधेरा हो तो दीए शब्द से नहीं मिटता। मंजरे-तस्वीर दर्दे-दिल मिटा सकता नहीं आईना पानी तो रखता है पिला सकता नहीं तुम अगर सिर्फ तस्वीर का अवलोकन करते रहो मंजरे-तस्वीर दर्दे-दिल मिटा सकता नहीं ___ तो तुम्हारे दिल की पीड़ा न मिटेगी तस्वीरों के देखने से। प्रेमी की तस्वीर लिए बैठे रहो, इससे कहीं कोई प्रेमी मिला है? आईना पानी तो रखता है पिला सकता नहीं आईने में कैसी पानी की झलक है, पर उससे तुम्हारी प्यास न बुझेगी। शास्त्र 158
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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