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समझ और समाधि के अंतरसूत्र
जब वे पहुंच गए दो कोस के बाद तो आनंद ने बुद्ध से क्षमा मांगी कि मुझे क्षमा कर दें। मैं तो समझा कहां के झूठे, बेईमान, दुष्ट लोग हैं कि कम से कम रास्ता तक सही नहीं बता सकते। लेकिन बुद्ध ने कहा, करुणावान हैं।
पतंजलि ज्यादा करुणावान हैं। कृष्णमूर्ति कठोर हैं। कृष्णमूर्ति उतना ही बता देते हैं जितना है। वे कहते हैं, हजार कोस। तुम बैठ गए। तुमने कहा, अब देखेंगे। पतंजलि कहते हैं, बस दो कोस है। जरा चल लो, पहुंच जाओगे। पतंजलि को भी पता है हजार कोस है। लेकिन तुम्हारी हिम्मत हजार कोस चलने की एक साथ हो नहीं सकती। तुमसे उतना ही कहना उचित है जितना तुम चल सको। पतंजलि मंजिल को देखकर नहीं कहते, तुमको देखकर कहते हैं कि तुम्हारे पैरों की हिम्मत कितनी, साहस कितना, सामर्थ्य कितनी? दो कोस। देख लेते हैं कि दो कोस यह आदमी चल सकता है। अगर दो कोस चल सकता है तो ढाई कोस बता दो। दो कोस के सहारे आधा कोस और भी चल जाएगा। फिर बता देंगे ढाई कोस। जल्दी क्या है?
और धीरे-धीरे पहुंचा देंगे। - पतंजलि आहिस्ता-आहिस्ता क्रमबद्ध तोड़ते हैं। इसलिए पतंजलि का पूरा योगशास्त्र बड़ी क्रमिक सीढ़ियां हैं। एक-एक कदम, एक-एक कदम पतंजलि हजारों को ले गए। कृष्णमूर्ति नहीं ले जा सके।
'और कुछ ऐसा नहीं है कि कृष्णमूर्ति ने यह बात पहली दफे कही है। कृष्णमूर्ति जैसे चिंतन के लोग पहले भी हुए हैं। उन्होंने भी इतनी ही बात कही है, यही बात कही है, वे भी किसी को नहीं पहुंचा सके। __ कृष्णमूर्ति की ज्यादा इच्छा यह है कि तुमसे सच कहा जाए। सत्य की बड़ी प्रामाणिकता है। वे कहते हैं, हजार कोस है तो हजार ही कोस कहना है। एक कोस भी कम करके हम क्यों कहें, झूठ क्यों बोलें? कृष्णमूर्ति कहते हैं, कहीं झूठ बोलने से किसी को सत्य तक पहुंचाया जा सकता है? ____ मैं तुमसे कहता हूं, हां! पहुंचाया जा सकता है। पहुंचाया गया है। पहुंचाया जाता रहेगा। और तुम अनुग्रह मानना उनका जिन्होंने तुम्हारे कारण झूठ तक बोलने की व्यवस्था की है। जो तुम्हारी वजह से झूठ तक बोलने को राजी हो गए।
सत्य को कह देना बहुत कठिन नहीं है। अगर तुम्हारी चिंता न की जाए, तो सत्य को कह देने में क्या कठिनाई है? जैसा है वैसा कह दिया, बात खतम। अगर तुम्हारी चिंता की जाए, तो वैसा कहना होगा जहां से तुम्हें खींचना है। तुम एक गहरे गर्त में पड़े हो। तुम्हारे अंधकार में रोशनी पहुंचती ही नहीं। तुमसे रोशनी की बात भी क्या करनी! तुम्हें तो धीरे-धीरे, शनैः-शनैः अंधेरे के बाहर लाना है। तुमसे कुछ कहना जरूरी है जिसका तुमसे आज तालमेल बैठ जाए। कल की कल देख लेंगे।
पर ये दो दृष्टिकोण हैं। जिसको जो जम जाए। जिसको जो रम जाए। एक बात भर खयाल रखना, न तो पतंजलि की समाधि का तुम्हें अभी पता है, न कृष्णमूर्ति
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