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________________ पंचस्कंध के, दुख-निरोध के, प्रज्ञा-पारमिता की दुर्मिल चंड शक्ति के। तुम समता के गायक भी हो और मार्क्स-माओ के दुर्लभ पूर्वपुरुष भी। श्रद्धा और बोध में बुद्ध का बल ‘बोध' पर है। इसी बोध' ने उन्हें 'बुद्ध' बनाया। उनकी रुचि को मंजिल की ओर नहीं, पथ और प्रस्थान की ओर उन्मुख कर दिया। 'जो चल पड़ा, वह पहुंच गया।...पहले कदम पर ही पहुंचना हो जाता है। इसे महावीर ही नहीं, बुद्ध और ओशो भी स्वीकारते हैं। दूसरे शब्दों में, 'गंतव्य' 'मार्ग' का उपसंहार नहीं है। मैंने अपनी एक कविता में, जिसका शीर्षक है-'पाथेय है पथ ही', मार्ग और मंजिल के बारे में यह भाव व्यक्त किया है महत्व केवल मंजिल का ही नहीं, राह का भी है। राह भी तुम्हारे तलवों को छूती हुई एक सच्चाई है। कितनी खूबसूरत है राह! जरा उसमें रमो तो सही, केवल मंजिल को मोल दे कर आप्तियों ने भटकाया है तुम्हें। ओ मायोपहित चैतन्य! सिर्फ मंजिल को महत्व देना उतना ही गलत है, जितना यह कहना कि ईश्वर पुरुष था; ईश्वर पुरुष है। • मंजिल की ओर इस तरह बेतहाशा मत दौड़ो। राह में भी एक रौनक है, जिसे देखो और परखो। राह भी एक सच है और हर राही का
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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