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________________ अनंत छिपा है क्षण में को थोड़ी सी भी खुजलाहट हो सकती है। तुम तो तैयार ही बैठे हो खुजाने को। जरा सा इशारा मिल जाए कि तुम खुजा डालोगे। तुम तो खाज के पुराने शिकार हो। तुम्हें जरा से इशारे की जरूरत है कि तुम्हारी आकांक्षा के घोड़े दौड़ पड़ेंगे। तुम सब लगामें छोड़ दोगे। ___नहीं, मैं शांति की बात करता हूं। मैं मृत्यु की बात करता हूं, निर्वाण की बात करता हूं, शून्य होने की बात करता हूं, क्योंकि मुझे पता है कि तुम जब शून्य होओगे तो पूर्ण तो अपने आप चला आता है। उसको चर्चा के बाहर छोड़ो। चर्चा से नहीं आता, शून्य होने से आता है। शक्ति की बात ही मत करो। वह तो शांत होते मिल ही जाती है। वह तो शांत हुए आदमी का अधिकार है। __ जब मिल जाए, तो तुम क्या करोगे! इसलिए मैं आनंद, उत्सव और प्रेम की बात करता हूं। तुम जैसे हो, अभी प्रेम कर ही नहीं सकते। अभी तो तुम्हारा प्रेम धोखा है। तुम जैसे हो, आनंदित हो ही नहीं सकते। अभी तो आनंद केवल मुंह पर पोता गया झूठा रंग-रोगन है। अभी तुम जैसे हो, हंस ही नहीं सकते। अभी तुम्हारी हंसी ऊपर से चिपकाई गई है, मुखौटा है। किसी ने पूछा है दूसरा प्रश्न : कल आपने कहा कि दूसरा कभी किसी को खुश नहीं कर सकता है। मगर प्रेमी के साथ प्रेम में डूब जाने में जो सुख, आनंद और अहोभाव अनुभव होता है, वह क्या है? हो नहीं सकता। जल्दी मत कर लेना निर्णय की। जरा बड़े-बूढ़ों से पूछना। - यह मुक्ति ने पूछा है। अभी प्रेम के मकान के बाहर ही चक्कर लगा रही है। जरा बड़े-बूढ़ों से पूछना, वे कहते हैं जब तक मिले न थे जुदाई का था मलाल अब ये मलाल है कि तमन्ना निकल गई जब तक मिले न थे, तब तक दूर होने की पीड़ा थी। अब जब मिल गए, तो पास होने की आकांक्षा भी निकल गई। अब यह दुख है कि अब कैसे हटें, कैसे भागें? ___जल्दी मत करना। अभी जिसको तुम प्रेम, आनंद, अहोभाव कह रहे हो वह सब शब्द हैं सुने हुए। अभी प्रेम जाना कहां? क्योंकि तुम जैसे हो उसमें प्रेम फलित ही नहीं हो सकता। प्रेम कोई ऐसा थोड़े ही है कि तुम कैसे ही हो और फलित हो 85
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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