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________________ एस धम्मो सनंतनो है एक तरह की विक्षिप्तता । आवश्यकता जीवन की जरूरत है। भोजन चाहिए, कपड़ा चाहिए, छप्पर चाहिए | एक आवश्यकता है, उतनी पूरी होनी चाहिए। और हर आदमी उसे पूरी कर लेता है। उसके कारण कोई चिंता नहीं है तुम्हारे भीतर । चिंता तुम्हारे भीतर उन चीजों के कारण है जो आवश्यक नहीं हैं। उन्हीं का तुम्हें रोग खाए जा रहा है। 'विषय - रस में अशुभ देखते हुए विहार करने वाले, इंद्रियों में संयत, भोजन में मात्रा जानने वाले, श्रद्धावान और उद्यमी पुरुष को मार वैसे ही नहीं डिगाता जैसे आंधी शैल - पर्वत को ।' बुद्ध के संघ में बहुत समय तक बुद्ध ने स्त्रियों को दीक्षा न दी। बहुत आग्रह करने पर, और एक बड़ी अनूठी महिला कृशा गौतमी के अत्यंत निवेदन करने पर बुद्ध ने स्वीकार किया। लेकिन तब उन्होंने कुछ नियम बनाए। जब वे नियम बना थे, तो उन्होंने भिक्षुओं से कई सवाल पूछे, नियम बनाने के निमित्त । और आनंद ने बहुत से प्रश्न उठाए नियमों के संबंध में, ताकि सब नियम विस्तारपूर्ण हो जाएं। तो आनंद ने पूछा कि कोई भिक्षु अगर किसी स्त्री को मार्ग पर मिले, मा भिक्षुणी को मार्ग पर मिले, तो क्या व्यवहार होना चाहिए? तो बुद्ध ने कहा, भिक्षुणी, चाहे भिक्षु उम्र में उससे छोटा भी हो, तो भी उसे प्रणाम करे। यह बात जरा बुद्ध के मुंह में जमती नहीं । महावीर ने भी यही नियम बनाया - कि भिक्षुणी, साध्वी, चाहे सत्तर साल की हो, चाहे दीक्षा लिए हुए उसे पचास साल हो गए हों, और अभी कल के दीक्षित साधु के सामने भी आ जाए तो झुककर नमस्कार करे । साधु को ऊपर बिठाए, स्वयं नीचे बैठे। यह बात महावीर के मुंह में भी जमती नहीं। क्योंकि दोनों स्वतंत्रता के बड़े, समानता के बड़े परिपोषक थे। जैन और बौद्ध दोनों परेशान रहे हैं कि कैसे इन बातों को छिपाया जाए। वे उनकी चर्चा नहीं उठाते। लेकिन मैं इसमें बड़ा गहरा कारण देखता हूं। क्योंकि बुद्ध और महावीर जब ऐसी बात कहते हैं तो बड़े अर्थ हैं उनके । एक मनुष्य के मन की बड़ी गहरी बात बुद्ध ने पकड़ी। अगर कोई स्त्री पुरुष को सम्मान दे, तो फिर पुरुष की वासना उसके प्रति बहनी मुश्किल हो जाती है, कठिन हो जाती है। अगर कोई स्त्री तुम्हारे पैर छू ले, तो फिर वासना असंभव हो जाती है— उसने द्वार बंद कर दिया। क्योंकि पुरुष वासना में उसी स्त्री के प्रति झुक सकता है जिसने उसे सम्मान न दिया हो, जिसने उसे आदर न दिया हो। क्योंकि वासना में झुकने का मतलब है पुरुष खुद अपनी ही आंखों में अपने से नीचे गिरता है। इसलिए वेश्या के साथ तुम जितने वासना का संबंध बना सकते हो किसी और के साथ नहीं बना सकते। क्योंकि उसके सामने नीचे गिरने में कोई डर नहीं है। उसने कभी तुम्हें कोई आदर दिया नहीं। बुद्ध और महावीर ने, दोनों ने पुरुष के अहंकार को पकड़ लिया ठीक जगह, कि उसका अहंकार ही अगर रुक जाए तो ही रुक सकेगा, अन्यथा वासना का प्रवाह 72
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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