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एस धम्मो सनंतनो
पड़ा। एक-एक शब्द सोचकर उपयोग करना पड़ा। मैं जानता हूं उनकी अड़चन कितनी रही होगी। क्योंकि आनंद से भरे हुए व्यक्ति को, दुख है, दुख के कारण हैं, दुख दूर करने के उपाय हैं, दुख-निरोध की अवस्था है—कैसा मुश्किल पड़ा होगा! आनंद से लबालब, आनंद की बाढ़ आयी हो–उसको दुख ही दुख की चर्चा करनी पड़ी! ___ उपनिषद दुख की चर्चा ही नहीं करते। वे कहते हैं : ब्रह्म है। दुख की कोई बात ही नहीं करते। बुद्ध को दुख ही दुख की बात करनी पड़ी। सुनकर कई को तो लगा कि बुद्ध दुखवादी हैं। पश्चिम में यही भ्रांति फैल गयी कि बुद्ध निराशावादी हैं, दुख ही दुख की बात करते हैं। रुग्ण हैं थोड़े । बुद्ध से ज्यादा स्वस्थ आदमी कहां हुआ! लेकिन बुद्ध की मजबूरी थी। उनको निषेध का उपयोग करना पड़ा। क्योंकि जैसे ही वे विधेय का उपयोग करते, पंडित सिर हिलाने लगते, वे कहते, बिलकुल ठीक! जैसे कि वे जानते हैं।
बुद्ध ने जब दुख की बात की और दुख ही दुख की बात की, तो पंडित चौंका। उसने कहा, यह आदमी जान नहीं सकता। यह पंडित से बचने की व्यवस्था थी। यह-पंडित को पास नहीं आने दिया बुद्ध ने। ____पंडित बीमारी है। वह मंदिर में आ जाए, मंदिर नष्ट हो जाता है। और वह पूरी कोशिश करता है आने की, जब तक कि द्वार पर ही विरोधाभास न मिल जाए। __ मैं दोनों की बात कर रहा हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि यह एक ही बात को कहने के दो ढंग हैं। ये दो बातें हैं ही नहीं। तुम्हें दो बातें दिखायी पड़ती हैं, क्योंकि तुम दुख में खड़े हो। तुम्हें यह दिखायी ही नहीं पड़ता कि दुख से आनंद कैसे जुड़ सकता है। तुम अंधेरे में खड़े हो। तुम्हें यह दिखायी ही नहीं पड़ सकता कि अंधेरा केवल प्रकाश का अभाव है। अंधेरे से तुम प्रकाश को जोड़ ही नहीं पाते। कैसे जोड़ोगे? प्रकाश कभी तुमने देखा नहीं। लेकिन मैंने प्रकाश देखा है; और मैं तुमसे कहता हूं कि अंधेरे का न हो जाना प्रकाश है; या प्रकाश का हो जाना अंधेरे का न हो जाना है। ये दो चीजें नहीं हैं, विरोधाभास नहीं है। ___ अगर साध्य की पूछते हो तो आनंद, अगर साधन की पूछते हो तो दुख। अगर मंजिल की पूछते हो तो और बात होगी। अगर मार्ग की पूछते हो तो और बात होगी।
और दोनों जरूरी हैं। मंजिल से भी ज्यादा जरूरी मार्ग की बात है। अगर कोई मुझसे कहे कि उपनिषद और बुद्ध में चुनना है तो मैं किसको चुनंगा-तुम्हारे लिए अगर चुनना हो तो बुद्ध को चुनूंगा, मेरे लिए अगर चुनना हो तो उपनिषद को चुनूंगा। क्योंकि मैं जो कहना चाहता हूं वह उपनिषद ने कहा है। तुम्हें जहां पहुंचना है वह बद्ध के मार्ग से ही चलकर वहां पहुंच सकोगे।
अगर मंजिल पर पहुंचने वाले लोगों को चुनाव करना हो तो वह उपनिषद को चुनेंगे, क्योंकि उपनिषद में जो अभिव्यक्ति है वह मंजिल की है। मार्ग पर चलने वालों को अगर चुनना हो तो बुद्ध ही सहारा हैं; क्योंकि अभी मार्ग की कठिनाइयां
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