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________________ देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है झेन पंडित की पकड़ के बाहर रह गया, क्योंकि असंगत है। पंडित लाख उपाय करे तो भी उसे झंझट होती है कि इसको बिठाए कैसे, तर्क में कैसे बिठाए ! तो मैं जो तुमसे कह रहा हूं वह झेन है। वह विरोधाभास है, पैराडॉक्स है, ताकि पंडित से बच सके। सिर्फ पैराडॉक्स पंडित से बच सकता है, और कोई नहीं बच सकता। बुद्ध नहीं बच सके, उपनिषद नहीं बच सके। इसलिए मैं बुद्ध के शून्य की चर्चा कर रहा हूं और प्रेम की भी साथ ही साथ । तुम्हें अड़चन होती होगी कि बुद्ध में कैसे प्रेम आ रहा है; मीरा में आना चाहिए था ! घबड़ाओ मत, जब मीरा की चर्चा करूंगा, शून्य को ले ही आऊंगा। क्योंकि मैं जानता हूं, विरोधाभास ही केवल पंडित के जाल और पंडित की पकड़ से बच सकता है, और कोई उपाय नहीं है। . इसी भांति का एक और प्रश्न है : बुद्ध ने चार आर्य सत्य कहे हैं-दुख है; दुख के कारण हैं; दुख-निरोध है; दुख-निरोध की अवस्था है। आपको सुनकर लगता है कि आप भी चार आर्य सत्य कहते हैं—आनंद है जीवन, आनंद का उत्सव है जीवन; उत्सव को साधने के उपाय हैं; उत्सव की संभावना है; उत्सव की परम देशा है। दो बुद्धपुरुषों के आर्य सत्यों में इतना विरोधाभास क्यों ? - ए क ही बात है । बुद्ध का ढंग नकार है । वे कहते हैं : दुख है, दुख को मिटा दो । जो बचेगा, उसकी वे बात नहीं करते। मैं तुमसे उसकी बात कर रहा हूं जो बचेगा। उसकी भी बात कर रहा हूं जो बचेगा। दुख है - बिलकुल ठीक है। दुख को मिटा दो तो जो बचेगा वह आनंद है। दुख के कारण हैं— उनको हटा दो, उन कारणों को गिरा दो, तो सुख की बुनियाद पड़ जाएगी, आनंद की बुनियाद पड़ जाएगी । दुख को मिटाने के साधन हैं, आनंद को पाने के साधन हैं - वे एक ही हैं। जो दुख को मिटाने के साधन हैं, वही आनंद को पाने के साधन हैं। जो बीमारी को मिटाने की औषधि है, वही स्वास्थ्य को पाने का उपाय है। जो अंधेरे को हटाने का ढंग है, वही प्रकाश को पाने की व्यवस्था है । बुद्ध कहते हैं : दुख-निरोध की अवस्था है, निर्वाण है । पर दुख निरोध का उपयोग करते हैं। ब्रह्म-उपलब्धि, पूर्ण का आगमन - -उसका वे उपयोग नहीं करते। उनकी मजबूरी थी । पंडितों ने खराब कर दिया था। उन्हें बहुत सावधान होकर चलना 1 245
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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