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एस धम्मो सनंतनो
तो उन्होंने ही जाना, जो जागे। और जिन्होंने जाना और जागे, उनका सपना मिट गया। तो जागना ही सपने से मुक्त होने की भी कला है-सपने को जानने की भी और सपने से मुक्त होने की भी।
चौथा प्रश्नः
रजनीश-ए-इश्क ने हमें निकम्मा कर दिया वरना आदमी थे हम भी कुछ काम के
का म के तो रहे हो, राम के नहीं थे। और काम की दुनिया में जब तक निकम्में
न हो जाओ, तब तक राम की दुनिया में गति नहीं होती। काम की दुनिया ही तो संसार है। काम की दुनिया से जागो, तो ही राम की दुनिया की पात्रता उपलब्ध होती है। और काम की दुनिया में चल-चलकर किसको क्या मिला? रहे होओगे काम के, लेकिन पाया क्या? अगर पा लिया ही होता तो मेरे पास ही क्यों आते? तब तो मैं तुम्हारे पास आता।
नहीं, काम बहुत काम का सिद्ध नहीं हुआ।
एक सूफी कथा है। गजनी के महमूद के दरबार में एक आदमी आया। वह अपने बेटे को साथ लाया था। उसने बेटे को बड़े ढंग से बड़ा किया था, बड़े संस्कारों में ढाला था, बड़ा परिष्कृत किया था। सदा से उसकी यही आकांक्षा थी कि उसका एक बेटा कम से कम महमूद के दरबार में हिस्सा हो जाए। उसने उसके लिए ही उसे बड़ी मेहनत से तैयार किया था। उसे पक्का भरोसा था, क्योंकि उसने सभी परीक्षाएं भी उत्तीर्ण कर ली थीं और जहां-जहां, जहां-जहां उसे पढ़ने-लिखने भेजा था, गुरुओं ने बड़े प्रमाण-पत्र दिए थे और उसकी बड़ी प्रशंसा की थी। वह बड़ा बुद्धिमान युवक था। सुंदर था, दरबार के योग्य था। आशा थी बाप को कि कभी न कभी वह बड़ा वजीर भी हो जाएगा। __महमूद से आकर उसने कहा कि मेरे पांच बेटों में यह सबसे ज्यादा सुंदर, सबसे ज्यादा स्वस्थ, सबसे ज्यादा बुद्धिमान है। यह आपके दरबार में शोभा पा सकता है, आप इसे एक मौका दें। और जो भी जाना जा सकता है, इसने जान लिया। महमूद ने सिर भी ऊपर न उठाया। उसने कहा, एक साल बाद लाओ।
सोचा बाप ने, शायद अभी कुछ कमी है, क्योंकि सम्राट ने चेहरा भी उठाकर न देखा। उसे एक साल के लिए और अध्ययन के लिए भेज दिया। सालभर के बाद जब वह और अध्ययन करके लौट आया-अब अध्ययन को भी कुछ न बचा, वह आखिरी डिग्री ले आया-फिर लेकर पहुंचा। महमूद ने उसकी तरफ देखा, लेकिन
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