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________________ देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है लेकिन सस्ता मालूम पड़ता है यह। मैंने कहा, तुमने मान लिया-यह बिलकुल सरल है। तुम्हें कुछ करना ही न पड़ा, तुमने सुन लिया। तुम तो शायद यह समझते हो कि सुनने में भी तुम कुछ मुझ पर एहसान कर रहे हो। मेरे पास लोग पत्र लिखकर भेज देते हैं कि हम आपको इतने दिन से सुन रहे हैं, अभी तक कुछ क्यों नहीं हुआ? जैसे मेरा कोई कसूर है! जैसे उन्होंने इतने दिन से सुना है तो बड़ी कृपा की है। लिखकर भेज देते हैं कि हम हजारों मील से चलकर आए हैं और अभी तक कुछ नहीं हुआ! तुम हजारों मील से चलकर आए हो, इससे तुमने मुझ पर कोई एहसान नहीं किया। कुछ अभी तक क्यों नहीं हुआ? तुम क्या सोचते हो, मुझे सुनकर ही कुछ हो जाएगा? अगर ऐसा होता, तो सारी दुनिया कभी की बदल गयी होती। तो दुनिया में दो तरह की मूढ़ताएं हैं। एक मूढ़ता कि लोग सोचते हैं कि सुन लिया, सब हो गया। पंडित हो जाते हैं। दूसरी मूढ़ता, सुन लिया, उसको आचरण में लाने लगे। पाखंडी हो जाते हैं। सुनो और उसे जानो। वह ठीक सूत्र है। आचरण की चिंता मत करो। और सुनने को, जान लिया ऐसा मत मानो। तब तुम सम्यक-मार्ग पर हो। तुम्हारे सपने सपने हैं—ऐसा मैं कहता हूं, बुद्ध कहते हैं। ठीक ही कहते होंगे, ऐसा तुम समझो। इतनी श्रद्धा रखो कि ठीक कहते होंगे। लेकिन खोजना है तुम्हें। उनके ठीक का तुम्हें गवाह होना है। जब तक तुम उनके गवाह न बन जाओ, जब तक तुम भी अपने जीवन के अनुभव से न कह सको कि हां, ठीक, तब तक जल्दी मत करना। और सपने को जानने का एक ही उपाय है कि तुम थोड़े जागो। सपने में सपना तो याद नहीं आता। सपने में सपना तो पहचान नहीं आता। सुबह जागकर पहचान आता है कि रात सपना देखा। जब तुम सपना देखते हो तब तो सपना ही सत्य होता है। लोग कहते हैं, हम कान की सुनी नहीं मानते, आंख की देखी मानते हैं। मगर आंख की देखी का भी कितना भरोसा है? रोज सपना देखते हो, सुबह उठकर पाते हो सब झूठ था। न यहां कान का भरोसा है, न यहां आंख का भरोसा है। यहां भरोसा ही नहीं है। इसलिए बहुत कदम सम्हाल-सम्हालकर चलना है। सुबह उठकर पता चलता है कि सपना था, रात पता नहीं चलता। और हजार बार ऐसा हो चुका है। हर रात सपना देखा, हर सुबह पता चला—फिर भी जब तुम सांझ फिर सो जाते हो, फिर भूल जाते हो। सपने में ही जागना पड़ेगा। सपने को देखना पड़ेगा। और मजा यह है कि जो जागता है वही देख पाता है कि सपना सपना है; और साथ में यह भी कि जैसे ही तुम देख पाते हो सपना सपना है-सपना तिरोहित हो जाता है। तुम जाग गए, फिर सपना हो कैसे सकता है? 239
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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