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________________ एस धम्मो सनंतनो लगते हैं। फिर तुम जागते में सपना देखने लगोगे। आंख खुली रहेगी और सपना देखोगे। सपना एक जरूरत है। सपना तुम्हारे मन का निकास है, रेचन है।। तीन दिन तक जागता रहा। सपने की शक्ति इकट्ठी हो गयी। तीन दिन भूखा रहा, शरीर कमजोर हो गया। ___ यह तुमने कभी खयाल किया! बुखार में जब शरीर कमजोर हो जाए तो तुम ऐसी कल्पनाएं देखने लगते हो जो तुम स्वस्थ हालत में कभी न देखोगे। खाट उड़ी जा रही है! तुम जानते हो कि कहीं उड़ी नहीं जा रही। अपनी खाट पर लेटे हो, मगर शक होने लगता है। क्या, हो क्या गया है तुम्हें? शरीर कमजोर है। ____ जब शरीर स्वस्थ होता है तो मन पर नियंत्रण रखता है। जब शरीर कमजोर हो जाता है तो मन बिलकुल मुक्त हो जाता है। और मन तो सपना देखने की शक्ति का ही नाम है। तो बीमारी में लोगों को भूत-प्रेत दिखायी पड़ने लगते हैं। स्त्रियों को ज्यादा दिखायी पड़ते हैं पुरुषों की बजाय। बच्चों को ज्यादा दिखायी पड़ते हैं प्रौढ़ों की बजाय। जहां-जहां मन कोमल है और शरीर से ज्यादा मजबूत है, वहीं-वहीं सपना आसान हो जाता है। तीन दिन का उपवास, तीन दिन की अनिद्रा, और फिर तीन दिन सतत एक ही मंत्र-यही तो मंत्रयोग है। तुम बैठे अगर राम-राम, राम-राम कहते रहो कई दिनों तक, पागल हो ही जाओगे। एक सीमा है झेलने की। वह तीन दिन तक कहता रहाः मैं भैंस हूं, मैं भैंस हं, मैं भैंस हूं। हो गया। मंत्रशक्ति काम कर गयी। लोग मुझसे पूछते हैं मंत्रशक्ति? उनको मैं यह कहानी कह देता हूं। यह मंत्रशक्ति है। नागार्जुन द्वार पर खड़ा हंसने लगा। वह युवक बहुत शर्मिंदा भी हुआ और उसने कहा, लेकिन आप हंसें, यह बात जंचती नहीं। तुम्हारे ही बताए उपाय को मानकर मैं फंस गया हूं। अब मुझे निकालो। सींग बड़े हैं, द्वार से निकलते नहीं बनता। और मैं भूखा भी हूं। नींद भी सता रही है। नागार्जुन उसके पास गया, उसे जोर से हिलाया। हिलाया तो थोड़ा वह तंद्रा से जागा। जागा तो उसने देखा, सींग भी नदारद हैं, भैंस भी कहीं नहीं है। वह भी हंसने लगा। नागार्जुन ने कहाः बस यही मुक्ति का सूत्र है। संसार तेरा बनाया हुआ है, कल्पित है। संसार को छोड़ना नहीं है, जागकर देखना है। इसलिए जिन्होंने तुमसे कहा कि संसार छोड़ो, उन्होंने तुम्हें मोक्ष में उलझा दिया। मैं तुम्हें संसार छोड़ने को इसीलिए नहीं कह रहा हूं। छोड़ने की बात ही भ्रांत है। जो है ही नहीं उसे छोड़ोगे कैसे? छोड़ोगे तो भूल में पड़ोगे। जो नहीं है उसे देख लेना, जान लेना कि वह नहीं है, मुक्त हो जाना है। इसलिए बुद्ध ने कहाः असत्य को असत्य की तरह देख लेना मोक्ष है। असार को असार की तरह देख लेना मोक्ष है। सारा राज देख लेने में है। . 228
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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