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एस धम्मो सनंतनो
है। दुकान पर बैठे हो, इससे संसार में हो; मंदिर में बैठ जाओगे, संसार के बाहर हो जाओगे—इतनी सस्ती बातों में मत पड़ जाना। काश, इतना आसान होता! तब तो कुछ उलझन न थी। दुकान में संसार नहीं है, और न मंदिर में संसार से मुक्ति है। अपेक्षा में, आकांक्षा में, आशा में संसार है; सपने में संसार है। तो तुम मोक्ष का सपना देखो, तो भी संसार में हो।
संसार के बाहर वही है जो अभी और यहीं है। लेकिन इसका तो अर्थ यह हुआ कि मोक्ष की आकांक्षा भी छोड़ देनी पड़ेगी। अन्यथा, मोक्ष के बहाने भी, मोक्ष की वासना से भी तुम नए-नए संसार बनाते चले जाओगे।
समझना काफी है, छूटना नहीं है। छूटना किससे है? किसी ने बांधा होता तो छूटते। किसी ने बांधा भी नहीं है। बंधन कहां है? बंधन से छूटने की जल्दी मत करो। क्योंकि यह भी हो सकता है, बंधन हो ही न! तब तुम छूटने की कोशिश से बंध जाओगे। और अगर बंधन नहीं है, तो छटोगे कैसे?
बंधन से छूटने की कोशिश मत करो, बंधन को जानने की कोशिश करो कि बंधन कहां है! पूछो। जिज्ञासा करो। वासना मत करो।
विपरीत की वासना भी वासना है। तुम कुएं से बचते हो, खाई में गिर जाते हो। इससे क्या फर्क पड़ेगा कि तुमने गिरने का ढंग बदल लिया? तुम बाएं गिरे कि दाएं गिरे, इससे क्या भेद पड़ता है ?
जिज्ञासा करो कि बंधन कहां है? बंधन क्या है? बंधन को भर आंख देखो। इसी को बुद्ध ध्यान कहते हैं, अप्रमाद कहते हैं, कि बंधन को भर आंख देखो। तुम्हारे देखने-देखने में तुम पाओगे, बंधन पिघला, बंधन गया। क्योंकि बंधन तुम्हारी मर्ची है। अगर तुम जागकर देखोगे, कैसे टिकेगा? बंधन वस्तुतः होता तो मुक्ति का कोई उपाय न था। बंधन केवल खयाल है। बात में से बात निकल आयी है। कहीं कुछ है नहीं।
एक युवक भिक्षु नागार्जुन के पास आया और उसने कहा कि मुझे मुक्त होना है। और उसने कहा कि जीवन लगा देने की मेरी तैयारी है। मैं मरने को तैयार हूं, लेकिन मुक्ति मुझे चाहिए। कोई भी कीमत हो, चुकाने को राजी हूं।
अपनी तरफ से तो वह बड़ी समझदारी की बातें कह रहा था। चिन्मय ने भी यही पूछा है आगे प्रश्न में:
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है उसने भी यही कहा होगा नागार्जुन को कि मरने की तैयारी है; अब तुम्हारे हाथ में सब बात है। मुझसे न कह सकोगे कि मैंने कुछ कमी की प्रयास में। मैं सब करने को तैयार हूं। अपनी तरफ से वह ईमानदार था। उसकी ईमानदारी पर शक भी क्या करें! मरने को तैयार था और क्या आदमी से मांग सकते हो? लेकिन ईमानदारी
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