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________________ एस धम्मो सनंतनो मजाक उड़ाता है, क्योंकि वह मूढ़तापूर्ण है। कभी नकार से मत लड़ना। संसार से मत लड़ना, सत्य को पाने की चेष्टा करना। नींद से मत लड़ना, जागने की फिकर करना। नींद तो अपने से चली जाती है। खयाल रखना, जिससे हम लड़ते हैं वह है या नहीं। अगर है, तो लड़ाई हो सकती है। अगर नहीं है तो कैसे लड़ाई होगी? और जो नहीं है, वह शक्तिशाली मालूम होगा। अंधेरे से लड़ो, अंधेरा बड़ा शक्तिशाली मालूम होगा। कितने ही हाथ-पैर चलाओ, उस पर कोई असर नहीं होता। कितना ही उछलो-कूदो, तुम ही थक जाते हो, अंधेरा नहीं थकता। पोटली में बांधो, पोटली बाहर चली जाती है, अंधेरा वहीं का वहीं रह जाता है। तो तुम्हें लगेगा, तर्क कहेगा, अंधेरा बड़ा शक्तिशाली है। अंधेरा शक्तिशाली नहीं है, अंधेरा है ही नहीं। तुम्हारी भूल है। छोटे से दीए को जलाओ। अंधेरे से लड़ने में जितनी शक्ति लगती थी, उसको रोशनी बनाने में लगाओ। इसलिए मैं कहता हूं, संसार से मत लड़ो, सत्य को खोजो। गृहस्थी को छोड़कर मत भागो, संन्यास को जगाओ। विधायक की चिंता करो, नकार की चिंता मत करो। 'जब पंडित प्रमाद को अप्रमाद से हटा देता है।' वही एकमात्र रास्ता है। इसलिए बुद्ध उसे पंडित कह रहे हैं। वही ज्ञानवान है. जो दीए को जलाता है। जो अंधेरे से लड़ता है, वह महामूढ़ है। 'तब वह प्रज्ञारूपी प्रासाद पर चढ़कर...।' यह एक समझने की बात है। बौद्ध चिंतन, मनन और ध्यान की प्रक्रिया का एक गहनतम सूत्र है। बुद्ध कहते हैं, पहले व्यक्ति को प्रमाद तोड़ना है, अंधेरा तोड़ना है। यह तोड़ना प्रकाश के लाने से होगा। तो प्रमाद मिटाना है, अप्रमाद जगाना है। लेकिन जब पहली दफा अप्रमाद आता है, तो वह इतनी बड़ी घटना है, वह इतनी विराट घटना है कि व्यक्ति उसमें डूब जाता है। जब पहली दफा ध्यान घटता है, तो ध्यान में ही व्यक्ति खो जाता है। __ जो यहां ध्यान कर रहे हैं, उनको इसके अनुभव होते हैं। जब पहली दफा ध्यान घटता है तो लोग मेरे पास आकर कहते हैं, क्या हुआ कुछ समझ में नहीं आता! विचार तो चले गए लेकिन अपना होश भी न रहा-नींद थी कि ध्यान था? बीच में एक अंतराल आ गया, कुछ क्षणों के लिए कुछ भी न रहा, तो हम सो गए थे, खो गए थे, या जाग गए थे? कुछ पता नहीं चलता, कोई स्मृति भी नहीं बनती उस घड़ी की। इतनी बड़ी घटना है ध्यान, कि स्मृति का यंत्र अवाक होकर ठहर जाता है; काम नहीं करता। बड़ी मीठी घटना है सूफी फकीर बायजीद के संबंध में। वह एक दिन बोल रहा था। पास में ही एक घड़ियाल टंगा था। जब वह बोल रहा था तो बीच में ही घड़ियाल के घंटे बजने लगे। उसने कहा, चुप। वह घड़ी चुप हो गयी और वह बोलता रहा। 216
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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