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________________ यात्री, यात्रा, गंतव्य : तुम्हीं थे— सब । कोई कमी नहीं रह जाती। संतोष तभी उपलब्ध होता है। उसके पहले संतोष सब मन को समझाना है । अपने मन को समझा लेना एक बात है, कि ठीक है, संतोष करो, क्योंकि लोग कहते हैं संतोष में सुख है । मैं तुमसे कहता हूं, सुख में संतोष है। संतोष में क्या खाक सुख होगा ! क्योंकि जो संतोष करके सोच रहा है सुख मिल जाए, वह दुखी तो है ही । लोग कहते हैं कि हम तो अपनी गरीबी में ही संतोष कर रहे हैं। लेकिन गरीबी का पता है, तो पीड़ा है। अमीर होने की दौड़ में उतरने का साहस भी नहीं है, तो संतोष कर लिया है। यह संतोष मजबूरी है। यह संतोष सुख नहीं है। इस संतोष से इतना हो सकता है कि तुम्हें बहुत दुख न मिलें, लेकिन सुख न मिलेगा। यह संतोष तुम्हें यात्रा की तकलीफ से बचा देगा, लेकिन मंजिल के आनंद को इससे तुम न पा सकोगे । मैं तुमसे कहता हूं, सुख संतोष है। और सुख केवल उसी को मिलता है जिसने स्वयं को जाना। स्वयं को जानना सुख है। स्वयं में रत हो जाना महासुख है। स्वयं में ठहर जाना स्वर्ग है। उसके अतिरिक्त सब दुख है। उसके अतिरिक्त तुम कुछ भी पा लो, तृप्ति न होगी । उसे पाते ही तृप्ति हो जाती है। 'जब पंडित प्रमाद को अप्रमाद से हटा देता है, तब वह प्रज्ञारूपी प्रासाद पर चढ़कर स्वयं अशोक और धीर बना संसार की शोकाकुल प्रजा को उसी प्रकार देखता है जिस प्रकार कोई पर्वत पर चढ़कर नीचे भूमि पर खड़े लोगों को देखे । ' एक-एक शब्द बहुमूल्य है। 'जब पंडित प्रमाद को अप्रमाद से हटा देता है।' अंधेरे को हटाने का और कोई उपाय भी नहीं है । कैसे हटाओगे अंधेरे को ? दीया जला लो। तलवारें लाने की जरूरत नहीं है कि अंधेरे से लड़ो, न बम-बंदूक काम आएगी, न पहलवानी की कोई जरूरत है। मोहम्मद अली को भी लड़ाओगे अंधेरे से तो मोहम्मद अली ही हारेगा, अंधेरा हारने वाला नहीं है। क्योंकि अंधेरा है ही नहीं, उससे लड़ोगे कैसे? लड़ने के लिए भी तो कोई चाहिए। अंधेरा तो अभाव है। तो अंधेरे को धक्के मत देने लग जाना । बहुत लोग यही कर रहे हैं। कोई क्रोध से लड़ रहा है, कोई काम से लड़ रहा है, कोई लोभ से लड़ रहा है, कोई मोह से लड़ रहा है। ये सब अंधेरे से लड़ने वाले लोग हैं । बुद्धपुरुषों ने यह नहीं कहा है। बुद्ध कहते हैं, 'जब पंडित प्रमाद को अप्रमाद से हटा देता है । ' अंधेरे को हटाने का एक ही उपाय है : दीए को जला लेना । जब पंडित, ज्ञानवान व्यक्ति प्रमाद के अंधकार को अप्रमाद के दीए से हटा देता है, बेहोशी को होश से तोड़ डालता है । और कोई उपाय नहीं है । इसलिए तुम क्रोध से मत लड़ना । उतनी ही शक्ति ध्यान को पाने में लगाओगे तो ध्यान भी मिल जाएगा, और क्रोध तो अपने से चला जाता है। जितनी शक्ति लोगों ने अंधकार से लड़ने में लगायी, वह व्यर्थ ही गयी। और अंधकार हंसता है, तुम्हारा 215
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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