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________________ यात्री, यात्रा, गंतव्य : तुम्हीं आप ही गोया मुसाफिर आप ही मंजिल हूं मैं तुम ही हो भगवान और तुम ही हो भक्त । तुम ही हो पूजा, पुजारी, पूज्य । | और जब तक तुम्हें यह बात स्मरण न आ जाए, तब तक तुम भटकते ही रहोगे । इसलिए बुद्ध न तो परमात्मा की बात करते हैं, न प्रार्थना की बात करते हैं, बुद्ध केवल ध्यान की बात करते हैं । अप्रमाद । ‘प्रमाद में मत लगे रहो। कामरति का गुणगान मत करो । प्रमादरहित व ध्यान में लगा पुरुष विपुल सुख को प्राप्त होता है । ' एक-एक शब्द समझ लेने जैसा है। 'प्रमाद में मत लगे रहो ।' जैसे तुम जी रहे हो, वह जीवन प्रमाद का है। प्रमाद का अर्थात मूर्च्छा का । वह जीवन तंद्रा का है। कभी-कभी तुम भी जागते हो तो तुम्हें भी लगता है, तुम व्यर्थ ही जी रहे हो। ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है जिसे कभी-कभी झलक न आती हो कि मैं क्या व्यर्थ जी रहा हूं! किसी दिन सुबह उठकर ऐसा लगता हो - क्या सार है इसमें? रोज उठता हूं, रोज जागता हूं, दौड़ता हूं; बाजार है, दौड़-धूप है, आपाधापी है, कमाना है, सांझ फिर सो जाना है, फिर सुबह उठ आना है। सुबह होती है शाम होती है उम्र यूं ही तमाम होती है लेकिन किसलिए? क्या प्रयोजन है इस सब का ? एक दिन ऐसे ही दौड़तेदौड़ते राह में गिर जाऊंगा। धूल धूल से मिल जाएगी। क्या परिणाम होगा इस सब यात्रा का ? और तुम कोई पहले नहीं हो। तुम जिस धूल पर चल रहे हो, वह न मालूम कितने लोगों को अपने में समा चुकी है। तुम जिसे रास्ता कहते हो, वहां कितने लोगों का मरघट नहीं बन गया है ! थोड़े गौर से अपने चारों तरफ देखो तो दिखायी पड़ेगाआग बुझी हुई इधर टूटी हुई तनाब उधर क्या खबर इस मुकाम से गुजरे हैं कितने कारवां जरा गौर से देखो अपने चारों तरफ । आग बुझी हुई इधर टूटी हुई तनाब उधर कितने खंडहर पड़े हैं। कहीं आग बुझी पड़ी है। जैसे किसी ने कभी जल्दी ही थोड़े ही समय पहले रोटी बनायी हो। चीजें टूटी-फूटी पड़ी हैं। कोई गुजरा है। क्या खबर इस मुकाम से गुजरे हैं कितने कारवां कितने लोग, कितने यात्री इस मुकाम से गुजर चुके हैं; और खो गए। उनका कोई चिह्न भी खोजे नहीं मिलता। ऐसे ही तुम भी खो जाओगे। यह बोध सभी को कभी न कभी पकड़ लेता है। लेकिन तुम इसे झुठला देते हो; तुम अपने को सम्हाल लेते हो। तुम्हारा 207
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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