________________
प्रेम है महामृत्यु
चौथा प्रश्न:
मीरा का मार्ग था प्रेम का, पर कृष्ण और मीरा के बीच अंतर था पांच हजार साल का। फिर यह प्रेम किस प्रकार बन सका? कृपया समझाएं।
प्रेम के लिए न तो समय का कोई अंतर है और न स्थान का। प्रेम एकमात्र
-कीमिया है, जो समय को और स्थान को मिटा देती है। जिससे तुम्हें प्रेम नहीं है वह तुम्हारे पास बैठा रहे, शरीर से शरीर छूता हो, तो भी तुम हजारों मील के फासले पर हो। और जिससे तुम्हारा प्रेम है वह दूर चांद-तारों पर बैठा हो, तो भी सदा तुम्हारे पास बैठा है। .. प्रेम एकमात्र जीवन का अनुभव है जहां टाइम और स्पेस, समय और स्थान दोनों व्यर्थ हो जाते है। प्रेम एकमात्र ऐसा अनुभव है जो स्थान की दूरी में भरोसा नहीं करता और न काल की दूरी में भरोसा करता है, जो दोनों को मिटा देता है।
परमात्मा की परिभाषा में कहा जाता है कि वह काल और स्थान के पार है, कालातीत। जीसस ने कहा है कि प्रेम परमात्मा है-इसी कारण। क्योंकि मनुष्य के अनुभव में अकेला प्रेम ही है जो कालातीत और स्थानातीत है। उससे ही परमात्मा का जोड़ बैठ सकता है। __ इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि कृष्ण पांच हजार साल पहले थे। प्रेमी अंतराल को मिटा देता है। प्रेम की तीव्रता पर निर्भर करता है। मीरा के लिए कृष्ण समसामयिक थे। किसी और को न दिखायी पड़ते हों, मीरा को दिखायी पड़ते थे। किसी और को समझ में न आते हों, मीरा उनके सामने ही नाच रही थी। मीरा उनकी भाव-भंगिमा पर नाच रही थी। मीरा को उनका इशारा-इशारा साफ था।
यह थोड़ा हमें जटिल मालूम पड़ेगा, क्योंकि हमारा भरोसा शरीर में है। शरीर तो मौजूद नहीं था।
बुद्ध ने स्वयं कहा है कि जो मुझे प्रेम करेंगे और जो मेरी बात को समझेंगे, कितना ही समय बीत जाए, मैं उन्हें उपलब्ध रहूंगा। और जिन्होंने बुद्ध को प्रेम नहीं . किया, वे बुद्ध के सामने बैठे रहे हों तो भी उपलब्ध नहीं थे।
शरीर समय और क्षेत्र से घिरा है। लेकिन तुम्हारे भीतर जो चैतन्य है, समय और क्षेत्र का उस पर कोई संबंध नहीं है। वह बाहर है। वह अतिक्रमण कर गया है। वह दोनों के अतीत है। __ जिस कृष्ण को मीरा प्रेम कर रही थी, वे कृष्ण देहधारी कृष्ण नहीं थे। वह देह तो पांच हजार साल पहले जा चुकी। वह तो धूल धूल में मिल चुकी। इसलिए जानकार कहते हैं कि मीरा का प्रेम राधा के प्रेम से भी बड़ा है। होना भी चाहिए।
193