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एस धम्मो सनंतनो
देखती है, फिर वह लौटा नहीं। हर बार पत्र आता है कि अब आऊंगा, अब आऊंगा, लेकिन देर होती चली गयी। ___एक दिन प्रेमी पत्र लिख रहा है सांझ को-और प्रेमी जैसा लंबे पत्र लिखते हैं—लिखते ही जा रहा है। उसने आंख उठाकर देखा ही नहीं कि सामने कौन खड़ा है। प्रेयसी यह देखकर कि यह लौट नहीं रहा है, उसे खोजती हुई उसके गांव आ गयी। वह द्वार पर खड़ी है आकर। लेकिन वह पत्र लिखने में तल्लीन है। वह इतना तल्लीन है कि जिसके लिए पत्र लिख रहा है वह सामने खड़ी है, लेकिन वह उसे देख नहीं पाया। और प्रेयसी ने यह सोचकर कि वह इतना तल्लीन है, बाधा देना ठीक नहीं, उसको काम पूरा कर लेने दो, वह चुपचाप खड़ी रही।
जब उसने पत्र पूरा किया और आंख उठायी तो उसे भरोसा न आया। वह घबड़ा गया। यहां कहां प्रेयसी हो सकती है ,उसकी? समझा होगा कोई भूत-प्रेत है, या कौन है? उसने अपनी आंखें मलीं। उसकी प्रेयसी ने कहा, आंखें मत मलो, मैं बिलकुल वास्तविक हूं। और मैं बड़ी देर से खड़ी हूं, लेकिन तुम पत्र लिखने में तल्लीन थे। तुम जिसे पत्र लिख रहे थे वह सामने खड़ा है। लेकिन तुम इतने तल्लीन थे कि मैंने बाधा देनी ठीक न समझी।।
कई बार हम हिसाब लगाने में तल्लीन रहते हैं और परमात्मा द्वार पर खड़ा होता है। शायद सदा ही ऐसा है। हम उसी की तरफ जाने का हिसाब बिठाते होते हैं, वह सामने ही खड़ा होता है।
कुछ इतने दिए हसरते-दीदार ने धोखे
वो सामने बैठे हैं यकी हमको नहीं है बहुत बार ऐसा हो जाता है, कि तुम कल्पना कर लेते हो अपने प्रेमी की, और फिर पाते हो कल्पना ही थी। सपना देख लेते हो, फिर जागकर पाते हो सपना ही था।
कुछ इतने दिए हसरते-दीदार ने धोखे कुछ अपनी ही कल्पना से इतने बार दर्शन कर लिए परमात्मा के, और हर बार पाया कि धोखा है।
कुछ इतने दिए हसरते-दीदार ने धोखे
वो सामने बैठे हैं यकी हमको नहीं है और अब सामने परमात्मा बैठा हो तो भी यकीन नहीं आता। पता नहीं कहीं फिर हमारी ही कल्पना धोखा न दे रही हो; कहीं फिर हमने ही न सोच लिया हो; कहीं फिर हमने ही यह मूर्ति न बना ली हो।
मिटने की तैयारी करो, कल्पनाएं सजाने की नहीं। प्रेमी को देखने की फिकर छोड़ो, अपने को मिटाने की फिकर करो। तुम्हारे मिटने में ही उसका दर्शन है।
प्रेमी की कला मरने की कला है। ध्यानी की कला जागने की कला है। मगर दोनों एक ही जगह ले आते हैं।
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