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एस धम्मो सनंतनो
इसलिए बुद्ध कहते हैं, पराक्रमी । यही एक पराक्रम है। उत्थानरत, सतत ध्यान में लगा, अप्रमत्त, ऐसा जिसका जीवन है वह जीवन ही धार्मिक जीवन है। मंदिर जाने से कुछ न होगा, मस्जिद जाने से कुछ न होगा, परमात्मा तुम्हारे भीतर है। कहीं और खोजोगे, व्यर्थ ही समय जाएगा। और सब जगह तुम खोज भी चुके हो। कितनी पृथ्वियों पर तुम भटके हो ! कितने लोक- लोकांतर में ! कितनी योनियों में ! कितनी जीवन-स्थितियों में! अब एक काम और कर लो कि अपने भीतर खोज लो। जिसने उसे वहां खोजा, वह कभी खाली हाथ नहीं आया । और जिन्होंने कहीं और खोजा, उनके हाथ कभी भरे नहीं ।
उम्रे - दराज मांगकर लाए थे चार दिन दो आरजू में कट गए दो इंतजार में
जो थोड़ा-बहुत समय बचा हो, उसे अब आरजू में और इंतजार में मत लगाओ। अब उसे भीतर के होश को जगाने में, भीतर की चेतना को उठाने में, भीतर के परमात्मा को पुकारने में लगाओ। और पुकारते ही वह उपलब्ध हो जाता है, क्योंकि केवल विस्मृति हुई है, उसे कभी खोया तो नहीं।
आज इतना ही ।
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