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________________ जागकर जीना अमृत में जीना है अपने को बचाया और दूर रखा, अपने को सम्हाला; होश को खोने न दिया, शरीर के साथ जुड़ने न दिया; तो अंतिम घटना जो घटेगी वह यह, जब मौत आएगी तब यह जीवनभर का अनुभव तुम्हारे साथ होगा। तुम मौत को भी देख पाओगे कि मौत आती है शरीर को, मुझे नहीं। लेकिन इसे आज से साधोगे तो ही मौत में सध पाएगा। ऐसा मत सोचना कि मरते वक्त ही साध लेंगे। जब प्यास में न सधेगा तो मौत में कैसे सधेगा? जब सिरदर्द में न सधेगा तो मौत में कैसे सधेगा? भूख में कोई मर नहीं जाता है एक दिन में। अगर आदमी भूखा रहे तीन महीने, तब मरेगा। जब एक दिन की भूख में न सधा और तुम खो गए, और एक हो गए शरीर के साथ, तो मृत्यु में कैसे सधेगा? मृत्यु में तो चेतना शरीर से पूरी तरह अलग होगी, और तुम्हारा ध्यान शरीर पर रहेगा। क्योंकि जिंदगीभर उसी का अभ्यास किया, उसी का सम्मोहन किया। तो तुम भूल ही जाओगे कि तुम नहीं मर रहे हो, तुम समझोगे कि मैं मर रहा हूं। कोई कभी मरा नहीं। कोई कभी मर नहीं सकता। इस संसार में जो है वह सदा से है, सदा रहेगा। रूपांतरण होते हैं, घर बदलते हैं, देह बदलती है, वस्त्र बदलते हैं, मृत्यु होती ही नहीं। मृत्यु असंभव है। कोई मरेगा कैसे? जो है, वह नहीं कैसे हो जाएगा? जो है, वह रहेगा; रहेगा, सदा-सदा रहेगा। __ लेकिन, फिर भी लोग रोज मरते हैं। रोज तड़फते हैं। बुद्ध जब कहते हैं अप्रमादी नहीं मरते, तो तुम यह मत समझना कि वे मरते नहीं, और उनको मरघट नहीं ले जाना पड़ता। वह तो बुद्ध को भी ले जाना पड़ा। नहीं मरते, क्योंकि वे जानते हैं, वे अलग हैं। तुम्हारे लिए तो वे भी मरते हैं, स्वयं के लिए वे नहीं मरते। क्योंकि मृत्यु की घड़ी में भी वे अपने भीतर के दीए को देखते चले जाते हैं। या निशा सर्वभूतानाम तस्याम जागर्ति संयमी। अंधेरी रात में, नींद में ही नहीं मृत्यु की घनघोर अमावस में भी, तस्याम जागर्ति संयमी। फिर भी संयमी जागा रहता है, देखता रहता है, सजग रहता है। . काशी के नरेश का एक ऑपरेशन हआ उन्नीस सौ दस में। पांच डाक्टर यूरोप से ऑपरेशन के लिए आए। पर काशी के नरेश ने कहा कि मैं किसी तरह का मादक-द्रव्य छोड़ चुका हूं; मैं ले नहीं सकता। तो मैं किसी तरह की बेहोश करने वाली कोई दवा, कोई इंजेक्शन, वह भी नहीं ले सकता, क्योंकि मादक-द्रव्य मैंने त्याग दिए हैं। न मैं शराब पीता हूं, न सिगरेट पीता हूं, चाय भी नहीं पीता। तो इसलिए ऑपरेशन तो करें आप-अपेंडिक्स का ऑपरेशन था, बड़ा ऑपरेशन था-लेकिन मैं कुछ लूंगा नहीं बेहोशी के लिए। डाक्टर घबड़ाए, उन्होंने कहा, यह होगा कैसे? इतनी भयंकर पीड़ा होगी, और आप चीखे-चिल्लाए, उछलने-कूदने लगे तो बहुत मुश्किल हो जाएगी! आप सह न पाएंगे। उन्होंने कहा कि नहीं, मैं सह पाऊंगा। बस इतनी ही मुझे आज्ञा दें कि मैं अपना गीता का पाठ करता रहूं। 167
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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