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'आज' के गर्भाशय से 'कल' का जन्म
पहला प्रश्न ः
आपने स्त्री के लिए प्रेम और पुरुष के लिए ध्यान का मार्ग बताया। मेरी तकलीफ यह है कि न प्रेम में परा डूब पाती हैं, न ध्यान में गहराई आती है। कृपया बताएं मेरे लिए मार्ग क्या
|ध में ज्योति ने पूछा है।
-धर्मगुरुओं का डाला हआ जहर बाधा बन रहा है। उस जहर से जब तक छुटकारा न हो, प्रेम तो असंभव है। क्योंकि प्रेम की सदा से निंदा की गयी है। प्रेम को सदा बंधन कहा गया है। और चूंकि प्रेम की निंदा की गयी है और प्रेम को बंधन कहा गया है, इसलिए स्त्री भी सदा अपमानित की गयी है। जब तक प्रेम स्वीकार न होगा तब तक स्त्री भी सम्मानित नहीं हो सकती, क्योंकि स्त्री का स्वभाव प्रेम है।
और बड़े आश्चर्य की बात यह है कि स्त्रियां जितनी धर्मगुरुओं से प्रभावित होती हैं उतना कोई भी नहीं होता। और उनकी जड़ पर ही वे कुठाराघात किए चले जाते हैं।
लेकिन एक बार तुम्हारे मन में जहर फैल जाए, और ऐसा खयाल आ जाए कि प्रेम बंधन है, तो तुमने पुरुष की भाषा सीख ली। और हृदय तुम्हारा स्त्री का है। तब
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