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एस धम्मो सनंतनो
प्रकृति का डर था महावीर और बुद्ध दोनों को। उनके संन्यासियों का डांवाडोल हो जाना निश्चित था ।
लेकिन मैं भयभीत नहीं हूं; क्योंकि मैं कहता हूं, स्त्रियां प्रेम के मार्ग से जाएं। और जिनका ध्यान डगमगा जाए, अच्छा ही है कि डगमगा जाए; क्योंकि ऐसा ध्यान भी दो कौड़ी का जो डगमगा जाता हो। वह डगमगा ही जाए वही अच्छा। जब डूबना ही है तो नौका में क्या डूबना, नदी में ही डूब जाना। मैं मानता हूं कि प्रेम स्त्री का तुम्हें घेरे और तुम्हारा ध्यान न डगमगाए, तो कसौटी पर उतरा सही । और जो प्रेम से न डगमगाए ध्यान, वही ध्यान समाधि तक ले जाएगा। जो प्रेम से डगमगा जाए, उसे अभी समाधि वगैरह तक जाने का उपाय नहीं। वह भाग आया होगा, प्रेम से बचकर, प्रेम की पीड़ा से बचकर - प्रेम से डरकर भाग आया होगा ।
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इसलिए मेरे लिए कोई अड़चन नहीं है। मैंने पहला संन्यास स्त्री को ही दिया। ये महावीर और बुद्ध को कहने को कि सुनो, तुम घबड़ाते थे, हम पुरुष को पीछे देंगे।
पुरुष ध्यान करे, स्त्री प्रेम करे – क्या अड़चन है ? स्त्री तुम्हारे पास प्रेम का पूरा माहौल बना दे, वातावरण बना दे, तो भी तुम्हारे ध्यान की लौ अडिग रह सकती है; कोई प्रयोजन नहीं है कंपने का । सच तो यह है कि जब प्रेम की हवा तुम्हारे चारों तरफ हो, तो ध्यान और गहरा हो जाना चाहिए। लेकिन अगर तुम अधकचरे भाग आए संसार से, तो डगमगाओगे । तो उनके लिए मेरे पास कोई जगह नहीं। उनको मैं कहता हूं, तुम वापस जाओ।
प्रेम को मैं कसौटी बनाता हूं ध्यान की, और ध्यान को मैं कसौटी बनाता हूं प्रेम की। पुरुष अगर ध्यान में हो, तो स्त्री कितना ही प्रेम करे, पुरुष डगमगाएगा नहीं । उसके निष्कंप ध्यान से ही करुणा उतरेगी स्त्री की तरफ, वासना नहीं। और वही करुणा तृप्त करती है। वासना किसी स्त्री को कभी तृप्त नहीं करती।
इसलिए तो कितनी ही वासना मिल जाए, स्त्री बेचैन बनी रहती है। कुछ खोया-खोया लगता है -
मेरा जानना है कि स्त्री को जब तक परमात्मा ही प्रेमी की तरह न मिले, तब तक तृप्ति नहीं होती । और जब तुम किसी ध्यानी व्यक्ति के प्रेम में पड़ जाओ तो परमात्मा मिल गया ।
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तो ध्यान प्रेम को बढ़ाएगा। क्योंकि ध्यान तुम्हारे प्रेमी को दिव्य बना देता है। और प्रेम ध्यान को बढ़ाएगा, क्योंकि प्रेम जो तुम्हारे चारों तरफ एक परिवेश निर्मित करता है, उस परिवेश में ही ध्यान का अंकुरण हो सकता है।
इसलिए मैं ध्यान और प्रेम में कोई विरोध नहीं देखता । ध्यान और प्रेम में एक गहरा समन्वय देखता हूं। होना ही चाहिए। जब स्त्री और पुरुष में इतना गहरा संबंध है, तो ध्यान और प्रेम में भी इतना ही गहरा संबंध होना चाहिए। और जब स्त्री और
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