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अकंप चैतन्य ही ध्यान
के बिना मैं नहीं बच सकता। अगर तू बिलकुल छूट गया- यही संन्यास है, बुद्ध का, महावीर का; मेरा नहीं । बुद्ध - महावीर का यही संन्यास है कि अगर तू बिलकुल मिट जाए तुम्हारे चित्त से तो मैं अपने आप गिर जाएगा; क्योंकि वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। तू के बिना मैं का कोई अर्थ नहीं रह जाता; मैं गिर जाएगा, तुम शून्य को उपलब्ध हो जाओगे ।
का मार्ग दूसरा है। वह कहती है, मैं को इतना गिराओ कि तू ही बचे, प्रेमी ही बचे, प्रीतम ही बचे। और जब मैं बिलकुल गिर जाएगा और तू ही बचेगा, तो तू भी मिट जाएगा; क्योंकि तू भी अकेला नहीं बच सकता । मंजिल पर तो दोनों पहुंच जाते हैं— शून्य की, या पूर्ण की— मगर राह अलग है । स्त्री मैं को खोकर पहुंचती है । पुरुष तू को खोकर पहुंचता है। पहुंचते दोनों वहां हैं जहां न मैं बचता है, न. तू बचता है।
जिसने दिल को खोया उसी को कुछ मिला फायदा देखा इसी नुकसान में
यह स्त्री की बात है
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जिसने दिल को खोया उसी को कुछ मिला फायदा देखा इसी नुकसान में
इसलिए बुद्ध - महावीर शंकित थे, संदिग्ध थे - स्त्री को लाना ? और उनका डर स्वाभाविक था। क्योंकि स्त्री आयी कि प्रेम आया। और प्रेम आया कि उनके पुरुष भिक्षु मुश्किल में पड़े। वह डर उनका स्वाभाविक था । वह डर यह था कि अगर स्त्री को मार्ग मिला और स्त्री संघ में सम्मिलित हुई, तो वे जो पुरुष भिक्षु हैं, वे आज नहीं कल स्त्री के प्रेम के जाल में गिरने शुरू हो जाएंगे। और वही हुआ भी । बुद्ध ने कहा था कि अंगर स्त्रियों को मैं दीक्षा न देता तो पांच हजार साल मेरा धर्म चलता, अब पांच सौ साल चलेगा। पांच सौ साल भी मुश्किल से चला । चलना कहना ठीक नहीं है, लंगड़ाया, घिसटा । और जल्दी ही पुरुष अपने ध्यान को भूल गए।
पुरुष को उसके ध्यान से डिगाना आसान है। स्त्री को उसके प्रेम से डिगाना मुश्किल है।
अगर तुम मुझसे पूछते हो, तो मैं यह कहता हूं कि बुद्ध और महावीर ने यह स्वीकार कर लिया कि स्त्री बलशाली है, पुरुष कमजोर है। अगर स्त्री को दिया मार्ग अंदर आने का, तो उन्हें अपने पुरुष संन्यासियों पर भरोसा नहीं - वे खो जाएंगे। स्त्री का प्रेम प्रगाढ़ है। वह डुबा लेगी उनको । उनका ध्यान- व्यान ज्यादा देर न चलेगा। जल्दी ही उनके ध्यान में प्रेम की तरंगें उठने लगेंगी।
स्त्री बलशाली है। होना भी चाहिए। वह प्रकृति के ज्यादा अनुकूल है। पुरुष दूर निकल गया है प्रकृति से - अपने अहंकार में । स्त्री अपने प्रेम में अभी भी पास है। इसलिए स्त्री को हम प्रकृति कहते हैं। पुरुष को पुरुष, स्त्री को प्रकृति ।
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