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श्रेष्ठता व जो अकेली रह सके
माधुर्य आ जाता है। उसके पैर ऐसे आते हैं कि किसी को बाधा न पड़ जाए, किसी के सुर-संगीत में कोई व्यवधान न आ जाए, मेरे चलने से भी किसी को कोई अड़चन न हो जाए। वह ऐसे आता है जैसे छाया आती है।
रिझाई ने खुद एक गीत लिखा है कि जब कोई ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है तो वह ऐसे हो जाता है जैसे वृक्ष की छाया सीढ़ियों को बुहारती है, लेकिन धूल उड़ती नहीं। वृक्ष की छाया सीढ़ियों को बुहारती है, लेकिन धूल उड़ती नहीं। एक दूसरे गीत में रिझाई ने कहा है, जैसे बगुलों की कतार आकाश में उड़ती है। न तो बगुले चाहते हैं कि झील में प्रतिबिंब बने और न झील की कोई आकांक्षा है प्रतिबिंब बनाने की। प्रतिबिंब बनता है और मिट जाता है; न झील को पता चलता, न बगुलों को पता चलता। ऐसा है व्यक्ति जो ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है। किसी को पता न चले; प्रतिबिंब भी बने तो आहट न हो। छाया भी बुहारे तो धूल का एक कण भी कंपे न। इतनी भी हिंसा नहीं चाहता।
निश्चित ही, उसके पैर की गति, उसके पैर की आवाज, सब बदल जाती है। उसकी पगध्वनि में पैसिविटी होती है, एक्टिविटी नहीं। उसकी पगध्वनि में कर्म नहीं होता, अकर्म की दशा होती है। वह चलता नहीं, जैसे कोई उसे चला रहा है। वह भीतर खाली हो गया है, शून्य। और उसके शून्य की प्रतिध्वनि उसके प्रत्येक कृत्य में मिलती है। ___'संत ऊपर होते हैं, और लोग उनका बोझ अनुभव नहीं करते।'
क्योंकि लोग स्वयं ही उन्हें ऊपर उठा लेते हैं। तुम किसी के ऊपर बैठने की कोशिश मत करना। तुम जिसके भी ऊपर बैठ जाओगे वही तुम्हारा दुश्मन हो जाएगा। और इसी तरह तो तुमने हजार तरह के दुश्मन अपने आस-पास इकट्ठे कर लिए हैं। और तुम्हारी पूरी चेष्टा यह है कि किसी के भी ऊपर बैठ जाएं। छोटा सा बच्चा भी घर में पैदा होता है तो मां और बाप उसके ऊपर चढ़ने की कोशिश शुरू कर देते हैं। छोटे से बच्चे को भी तुम छोड़ते नहीं, उसकी भी सवारी करते हो। और तब अगर बच्चे मां-बाप के दुश्मन हो जाते हैं तो कुछ आश्चर्य नहीं। अगर पति-पत्नी के बीच तालमेल खो जाता है तो कुछ आश्चर्य नहीं। क्योंकि दोनों एक-दूसरे के ऊपर सवारी की कोशिश में संलग्न हैं-कौन किसको डॉमिनेट करे, कौन किसको चलाए, कौन असली मालिक है?
क्या तुम इतने हीन हो कि तुम्हें छोटे बच्चे से भी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है? क्या तुम इतने हीन हो कि तुम अपनी पत्नी के ऊपर भी निर्बोझ नहीं हो सकते? क्या तुम इतने हीन हो कि तुम अपने पति को भी निर्बोझ नहीं छोड़ 'पाते?
जितनी श्रेष्ठता होती है उतना ही आदमी दूसरे को निर्बोझ छोड़ देता है। और जितनी हीनता होती है उतना ही आदमी दूसरे की छाती पर सवार होता है। क्यों? क्योंकि जब तुम श्रेष्ठ होते हो, लोग स्वयं ही तुम्हें सिर पर उठा लेते हैं। जब तुम निकृष्ट होते हो तभी तुम्हें खुद सीढ़ी लगा कर लोगों के सिर पर चढ़ना पड़ता है। क्योंकि निकृष्ट को कौन सिर पर रखेगा!
इसलिए तो तुम्हारी राजनीति निकृष्ट लोगों का धंधा हो जाती है। उसमें जो निम्नतम हैं समाज में, वे संलग्न हो जाते हैं। क्योंकि राजनीति सीढ़ी है जिससे पूरे मुल्क की छाती पर और सिर पर चढ़ कर बैठा जा सकता है। अगर दुनिया की राजधानियां, परमात्मा कुछ तरकीब करे, और एकदम से विलीन हो जाएं, सिर्फ राजधानियां, तो दुनिया में नब्बे प्रतिशत पाप एकदम विलीन हो जाएंगे। दिल्ली, लंदन, वाशिंगटन, मास्को, पेकिंग एकदम से समाप्त हो जाएं। क्योंकि वहां सब पागल, सब तरह के हीन-ग्रंथि से भरे लोग इकट्ठे हो गए हैं। राजधानियां घेर ली जानी चाहिए, और उनको मानसिक अस्पतालों में बदल दिया जाना चाहिए। वहां सब के इलाज की जरूरत है। और वे निकृष्टतम लोग हैं, क्योंकि निकृष्ट ही सिर पर चढ़ना चाहता है।
श्रेष्ठ को तो तुम सिर पर बिठा लो तो भी वह कहता है कि क्षमा करो, मुझे नीचे उतरने दो, क्यों नाहक कष्ट कर रहे हो! क्या कारण है इसका? कारण यह है कि श्रेष्ठ इतना श्रेष्ठ है अपने भीतर कि अब किसी के सिर पर बैठ
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