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________________ श्रेष्ठता वह जो अकेली रह सके को एक हाथ मारा। उस अफगान सैनिक ने तलवार निकाली और लड़के की गर्दन काट दी। नसरुद्दीन ने कहा, देखते हो! बुरी लत आखिर बुरा परिणाम ले आती है। हमारा तो कुछ भी न बिगड़ा, लड़का जान खो बैठा। नासमझ अगर जीत भी जाए तो अंततः बुरी तरह हारेगा। क्योंकि जीतने की लत पकड़ गई, स्वाद लग गया। समझदार हारता चला जाता है, समझदार अपने को अस्तित्व के विपरीत खड़ा नहीं करता। वह धारा के विपरीत नहीं बहता; जिस तरफ नदी बहती है उसी तरफ बहता है। और जिसने धारा के साथ बहना सीख लिया उसकी शक्ति नष्ट नहीं होती। तैरने में शक्ति नष्ट होती है। और धारा के विपरीत बहने में तो बहुत शक्ति नष्ट होती है। क्योंकि धारा से लड़ना पड़ता है। और आज नहीं कल तुम हार जाओगे, थक जाओगे, और तब धारा तुम्हें अवश बहा कर ले जाएगी। तब तुम दुखी, पीड़ित, संतप्त, विषाद में, हारे हुए, सर्वहारा, पराजित विदा होओगे। लेकिन जो धारा के साथ बहता रहा उसे धारा कभी भी पराजित न कर पाएगी। जो हार ही गया उसको तुम हराओगे कैसे? जो पहले से ही अंतिम बैठ गया उसे तुम अब और कहां पीछे हटाओगे? जिसने दावा न किया उसके दावे का खंडन नहीं किया जा सकता। और जिसने कभी घोषणा न की अपने अहंकार की उसके अहंकार को तुम चोट कैसे पहुंचाओगे? लाओत्से कहता है कि खड्डु और घाटियां समुद्रों और महानदियों से भर गए हैं। कैसे हुआ यह? झुकने और नीचे होने में कुशल होने के कारण। सागर की सारी कुशलता यही है कि वह नीचे है। छोटे-छोटे झरने भी उससे ऊपर हैं। इतना विराट सागर है, और नीचे है। और जितना नीचे है उतनी ही उसकी विराटता बढ़ती जाती है। क्योंकि उसके नीचे होने के कारण सभी झरनों को उसी में आकर गिर जाना पड़ता है। जो ऊंचा रहेगा वह सूख जाएगा। जो नीचा रहेगा उसकी तरफ सारे झरने बहते रहते हैं। जीवन में, पूरब ने, झुकने का राज बहुत-बहुत रूपों में समझा। और बहुत-बहुत रूपों ने पूरब की आत्मा को सागरों और नदियों से भर दिया। - पश्चिम से युवक मेरे पास आते हैं तो वे पूछते हैं कि गुरु के चरणों में झुकने में क्या फायदा? गुरु के चरणों का सवाल नहीं है। वह प्रासंगिक ही नहीं है। प्रासंगिक तो इतना है कि झुकने में क्या फायदा? और झुकने के फायदे का कोई अंत नहीं है। क्योंकि जब तुम झुकते हो तभी कुछ तुम में बहना शुरू होता है। सागर में ही नदियां नहीं बहती जब वह नीचे झुका होता है, तुम भी जब झुके होते हो तो अनंत-अनंत चेतना की नदियां तुम्हारी तरफ बहनी शुरू हो जाती हैं। और गुरु के चरणों में जो सचमुच झका है...।। क्योंकि सिर झुकाने का नाम सचमुच झुकना नहीं है। क्योंकि हो सकता है तुम औपचारिक रूप से झुका रहे हो। क्योंकि घर में परंपरा रही, बड़े-बढ़ों ने सिखाया है; सदा से चला आया है इसलिए झक रहे हो। झुकना चाहिए, कर्तव्य है, इसलिए झुक रहे हो। और लोग क्या कहेंगे, इसलिए झुक रहे हो। और लोग झुक रहे हैं, इसलिए झुक रहे हो, क्योंकि अनुकरण नहीं तो अच्छा न मालूम पड़ेगा। जैसा देश वैसा वेश। अब इतने लोग झुक रहे हैं तो हम भी झुक जाओ। लेकिन यह झुकना नहीं है। सिर का झुकना अहंकार का झुकना नहीं है। अगर तुम भीतर से भी झुक जाओ, किसी औपचारिकता से नहीं, बल्कि इस कुंजी को समझ कर कि झुकने में ' मिलता है, झुकने में तुम गड्ढे बन जाते हो। और चेतना भी ऐसे ही बहती है जैसा जल बहता है। और जब तुम्हारी चेतना गड्डे की तरह किसी के सामने झुक जाती है तो तत्क्षण चेतना का प्रवाह शुरू हो जाता है। मेरे पास इतने लोग आते हैं; इतने लोग झुकते हैं। मैं अलग-अलग उनको बता सकता हूं कि किसकी चेतना भीतर झुकी और किसने सिर्फ सिर झुकाया। क्योंकि उनके वास्तविक झुकने में तत्क्षण मेरे भीतर कुछ होना शुरू हो जाता है। अगर वे यूं ही झुके हैं तो मेरे भीतर कुछ भी नहीं होता। जैसे ही कोई व्यक्ति सच में ही झुकता है, तत्क्षण मेरी ऊर्जा उसकी तरफ बहनी शुरू हो जाती है। 73
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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