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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ 58 उस कंबीले ने इतिहास में कभी कोई झगड़ा नहीं किया; कोई झगड़ा नहीं हुआ। अगर एक कबीले में ऐसा हो सकता है तो सारी दुनिया में भी ऐसा हो सकता है। अगर थोड़े से लोगों में ऐसा हो सकता है तो सब में क्यों नहीं हो सकता? हमारे रहने के ढंग में कहीं कोई कठिनाई है, कहीं कोई गड़बड़ है, कहीं कोई मूल भूल है। और लाओत्से कहता है कि अतिशय ज्ञान के चलते शांति असंभव है। और जब व्यक्ति शांत नहीं होता तो वह अपनी अशांति दूसरों पर निकालता है। तब वह अपनी अशांति दूसरों पर फेंकता है; दूसरों को उत्तरदायी ठहराता है। तब संघर्ष शुरू होते हैं। और यही संघर्ष बढ़ते-बढ़ते बड़ी कलह का रूप लेते हैं। धर्म लड़ते हैं, राष्ट्र लड़ते हैं; जातियां लड़ती हैं। सूरज अगर हम मनुष्य का इतिहास गौर से देखें तो सिवाय लड़ाई के आदमी ने अब तक कुछ किया ही नहीं है। तीन हजार सालों में कोई पंद्रह हजार युद्ध हुए । हिसाब लगाया है इतिहासज्ञों ने तो वे कहते हैं कि तीन हजार सालों में ऐसे कुछ ही दिन हैं जब कहीं न कहीं युद्ध न हो रहा हो, कुछ ही दिन हैं जब कहीं भी युद्ध नहीं हो रहा। नहीं तो कहीं न कहीं युद्ध हो रहा है; कभी वियतनाम है, कभी कंबोदिया है, कभी कश्मीर है, कभी इजरायल है। कहीं न कहीं युद्ध हो रहा है। पृथ्वी कहीं न कहीं बड़े गहरे घाव से भरी रहती है, और मनुष्यता का प्राण कहीं न कहीं तड़पता रहता है, छुरा कहीं न कहीं छाती में भुंका ही रहता है। क्या कारण होगा ? क्या आदमी शांति से नहीं रह सकता? क्या आकाश के तारे और और वृक्ष और पक्षियों के गीत और पृथ्वी की हरियाली तृप्त होने के लिए काफी नहीं है? क्या परमात्मा ने जो दिया है वह कम है, इतना कम है कि हमें लड़ना ही पड़ेगा? हम उसे भोग नहीं सकते ? क्या यह नहीं हो सकता कि जितनी ऊर्जा हमारी युद्धों में लगती है उतनी ऊर्जा जीवन के उत्सव में लग जाए ? कि जिस शक्ति को हम नष्ट करते हैं युद्धों में... । क्योंकि करीब-करीब हर राष्ट्र की सत्तर प्रतिशत शक्ति युद्ध में लगती है। और बाकी तीस प्रतिशत जो है उसको भी अगर हम बहुत गौर से देखें तो घरेलू युद्ध न हो जाएं उनमें लगी रहती है। कहीं कोई आंदोलन है; कहीं कोई घेराव है; कहीं कोई उपद्रव है। आदमी बिना उपद्रव के एक क्षण नहीं है। और अपने उपद्रवों को बड़े अच्छे-अच्छे नाम देता है; कभी धर्मयुद्ध, जेहाद, कभी क्रांति, कभी इंकलाब, कभी स्वतंत्रता । बड़े अच्छे-अच्छे नाम देता है। और अच्छे नामों के पीछे छिपी रहती है सिर्फ अशांति, लड़ने की आकांक्षा । कोई बहाना मिल जाए और हम लड़ लें। कोई भी बहाना मिल जाए हम लड़ लें। बहाना न हो तो हम ईजाद करते हैं। हिटलर ने अपनी आत्म कथा में लिखा है कि अगर कोई दुश्मन न हो तुम्हारा, तो ईजाद कर लेना चाहिए, क्योंकि बिना दुश्मन के किसी भी राष्ट्र में शांति रखना असंभव है। क्योंकि लोग अगर बाहर न लड़ेंगे, तो भीतर लड़ेंगे। अगर हिंदुस्तान-पाकिस्तान न लड़ेंगे, तो इंदिरा और जयप्रकाश उपद्रव खड़ा करेंगे। इसलिए हर राजनीतिज्ञ कोशिश करता है कि बाहर कहीं न कहीं उपद्रव चलता रहे। जैसे ही बाहर उपद्रव जोर से चलता है, भीतर उपद्रव की कोई जरूरत नहीं रह जाती। इसे देखें गौर से । हिंदुस्तान में हिंदू-मुसलमान थे; पाकिस्तान नहीं बंटा था, हिंदू-मुसलमान लड़ते थे। तब तुमने कभी न सुना था कि हिंदी भाषी और गैर-हिंदी भाषी लड़ते हैं। तब तुमने कभी न सुना था कि मराठी और गुजराती लड़ सकते हैं। तब तुमने कभी न सुना था कि कन्नड़ और मराठी लड़ सकते हैं। दोनों हिंदू थे; लड़ने का कोई सवाल ही न था । लड़ाई बाहर चल रही थी; हिंदू-मुसलमान के बीच थी। अशांति वहां निकल जाती थी। फिर पाकिस्तान बंट गया। अब अशांति वहां निकलने का कोई कारण न रहा। अब हमें नये उपाय खोजने पड़ेंगे। अशांति तो है। तो अब कन्नड़ और मराठी लड़ेंगे। तो अब हिंदी और गैर-हिंदी भाषी लड़ेगा। और तुम यह मत सोचना कि यह झगड़ा मिट जाए तो कुछ हल होता है । सोच लो कि गुजरात को बिलकुल सबसे अलग काट कर कर दिया जाए, तो
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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