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________________ ताओ उपनिषद भाग६ । क्योंकि मेरी मां जब मुझे खाना बना कर खिलाती थी तो पहले खुद चख लेती थी। जब मां तक बेटे के लिए खाना देने के पहले चख लेती है और देखती है कि देने योग्य है भी या नहीं, तो मैं बिना चखे भगवान को भोग नहीं लगा सकता। पता नहीं, देने योग्य है भी या नहीं। तो तुम सम्हाल लो। अब किसी शास्त्र में नहीं लिखा है कि भगवान को भोग लगाने के पहले खुद चख लेना। लेकिन हृदय के शास्त्र में तो यही बात लिखी है। प्रेम नियम नहीं जानता, क्योंकि प्रेम आत्यंतिक नियम है। पूजा कोई औपचारिक क्रिया-कांड नहीं है, पूजा तो हृदय का उन्मेष है। लेकिन उसके लिए बड़ी सरलता चाहिए। और रामकृष्ण बड़े सरल आदमी थे। बेपढ़े-लिखे थे; दूसरी क्लास; वह भी पास नहीं थे। उतना थोड़ा सा ज्ञान था। ग्रामीण थे; कुछ जानते नहीं थे। और इस सदी में सब जानने वालों को पीछे छोड़ दिया। इस सदी में उनका आविर्भाव ऐसा हुआ कि एक बेपढ़ा-लिखा, एक गंवार गांव का, बड़े से बड़े पंडितों को फीका कर गया। हृदय का एक कण भी तुम्हारी बुद्धि की समस्तता से ज्यादा मूल्यवान है। भाव की एक छोटी सी ऊर्मि भी तुम्हारी खोपड़ी के बड़े से बड़े सागर से बड़ी है—एक छोटी सी लहर। क्योंकि वह जीवंत है। लाओत्से कहता है कि ताओ का अनुगमन करना, जो जानते थे, उन पूर्व-पुरुषों ने लोगों को ज्ञानी बनाने का इरादा नहीं किया; बल्कि वे उन्हें अज्ञानी ही रखना चाहते थे। क्योंकि उनके अज्ञान में एक गरिमा थी, एक सरलता थी, एक सौम्यता थी। उस अज्ञान में एक हृदय का भाव था। उस अज्ञान में एक खूबी थी जो शिक्षा ने नष्ट कर दी। आज दुनिया की बड़ी से बड़ी जो तकलीफ है वह यही है कि लोग बहुत शिक्षित हो गए। और सभी समझदार लोग कह रहे हैं कि युनिवर्सल एजुकेशन, सार्वभौम शिक्षा चाहिए। एक आदमी न बचे जो अशिक्षित हो; सब को शिक्षित करना है। चाहे उनकी मर्जी हो चाहे न हो, सबको अनिवार्य रूप से शिक्षित करना है। अज्ञानी किसी को छोड़ना ही नहीं है। और बिना सोचे-समझे हम मनुष्य को शिक्षित किए जा रहे हैं। और शिक्षा का कुल परिणाम इतना हुआ है कि आदमी जंग खा गया है; उसकी सब सरलता खो गई। शिक्षा का कुल परिणाम इतना हुआ, आदमी कठोर हो गया है, उसकी सारी सौम्यता खो गई। शिक्षा का कुल परिणाम इतना हुआ कि आदमी ज्ञानी नहीं हुआ, चालाक हो. गया है। शिक्षा चालाक बनाती है। शिक्षित आदमी शोषण करने में कुशल हो जाता है। वह इस तरह की तरकीबें बिठाता है कि खुद काम न करना पड़े और दूसरों से काम ले ले। शिक्षित आदमी के पूरे जीवन की योजना ही यह होती है कि उसे कुछ न करना पड़े और वह दूसरों का शोषण कर ले। और शिक्षित आदमी चालाक हो जाता है कि जो चीज बिना काम किए मिलती हो, कैसे बिना कुछ किए चीजें मिल जाएं, यही उसकी पूरी कुशलता हो जाती है। और यही तो चोरी है। चोरी और क्या है? चोरी का एक ही अर्थ है कि जिसके लिए हमने श्रम न किया हो उसे पा लेने की कोई तरकीब। दूसरे की जेब से कैसे पैसा निकल आए, बिना हाथ डाले, उसकी कुशलता शिक्षित आदमी में आ जाती है। और शिक्षित आदमी महत्वाकांक्षी हो जाता है; वह सबसे ऊपर पहुंचना चाहता है। और शिक्षित आदमी के जीवन से प्रेम तिरोहित हो जाता है; क्योंकि प्रेम गणित में बैठता नहीं, बल्कि गणित को गड़बड़ करता है। शिक्षित आदमी के जीवन से सौंदर्य, काव्य, धर्म, सब खो जाता है। उसके पास तो सिर्फ हिसाब रह जाता है—गणित और तर्क, और शोषण की कला, और महत्वाकांक्षा का ज्वर। शिक्षित आदमी ज्वरग्रस्त है। डी.एच.लारेंस ने, जो कि इस सदी में लाओत्से को प्रेम करने वाले थोड़े से लोगों में एक था, एक सुझाव दिया था। वह सुझाव मुझे बहुत प्रीतिकर लगता है। वह सुझाव था कि सौ वर्ष के लिए सब युनिवर्सिटीज, सब कालेज, सब स्कूल, सब बंद कर देने चाहिए। सौ वर्ष के लिए आदमी को बिलकुल बिना शिक्षा के छोड़ देना चाहिए। तो जो भी हमने कोई दस हजार वर्षों में आदमी के मन में कचरा भर दिया है, वह स्लेट साफ हो जाए। जैसे 56
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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